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बंसोड कम्प्यूटर टायपिंग इन्स्टीट्यूट पोला ग्राउण्ड छिन्दवाड़ा म0प्र0 मो0 नं0 8982805777(TALLY AND CPCT NEW BATCH START)
created Jan 25th 2023, 02:22 by Vikram Thakre
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अविश्सनीय रूप से आशावादी होने के नाते मैं कहूंगा- हॉ, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, कानून की नजर में हर कोई समान है और आदर्श रूप से न्याय करते समय किसी भी आधार पर कोई पूर्वाग्रह नहीं हैं। इसके अलावा भारत का सबसे बड़़ा लोकतंत्र है, अगर यहां गरीबों को न्याय नहीं मिल सकता है तो कहां बयानबाजी इस तथ्य का एक और दावा है कि सभी के लिये न्याय सरकारों का सिद्धांत है जो लोगों और लोगों के लिए हैं। हालांकि हाल ही में फिल्म मांझी दशरथ मांझी पर आधारित है, जिसमे अपना जीवन बिहार में मुख्य शहर से जोडने और इस तरह गांव को आसान बनाने के लिए पहाड़ को समतल करने के कठीन काम के लिए समर्पित कर दिया। शहर तक पहुंच चिकित्सा सहायक पहुंच के भीतर ही, फिल्म में गरीबी की स्थितियों पर प्रकाश ड़ाला रहा लोग बंधन में रहते थे, पीडिथे थे भोजन या आश्रय की कोई सुरक्षा नहीं थी और तकीये जैसी छोटी वस्तु का मालिक होना उनकी पहुंच से परे एक विलासिता थे। इसमें किसी गरीबी की पीड़ा और व्यक्ति की जैसी है और फिर भी करते है वे विपरीत परिस्थितियों में अपने सहास और ताकत से बच जाते हैं। गरीबों के लिए न्याय यह सवाल नहीं है कि गरीब निष्पक्ष फैसले की उम्मीद कर सकते है या नहीं बल्कि यह है कि
क्या उनके मामले में कोई विचार है। यह एक व्यक्ति था जिसने अकेले ही केवल हतौड़े और छैनी का उपयोग करके पहाड़ के माध्यम से एक रास्ता बनाने की जिम्मेदारी ली। जो वास्तव में सरकार की जिम्मेदारी थी। मामला संज्ञान में आने के बाद भी संबंधित अधिकारियों को कोई सहयोग नहीं मिला। जब प्रधानमंत्री ने काम के लिए पैसे मंजूर किये तो इसे भ्रष्ट अधिकारियों और जल्दी से निगल लिया। क्या धनराशि की स्वीकृति पर्याप्त है। क्या किसी परियोजन का या परियोजना की निगरानी या उसके पूरा होने तक उसका पालन करने का उनका कोई दायित्व नहीं है क्या यही न्याय था? या क्या यह न्याय था जब जाति वाद के नाम पर कमजोरी और उत्पीडि़तो पर अत्याचार किया जाता था, भले ही इसे कानून द्वारा समाप्त कर दिया हो? या यह उचित था जब साधारण ग्रामीणों को कानून को अपने हाथ में लेने के लिए मजबूर किया गया था? और क्या उन्होंने ऐसा किया होता अगर उन्हें न्यायिक व्यवस्था में विश्वास होता खैर, यह द माउन्टेन मैन की पर ओवर रियेक्शन नहीं है। बल्कि एहसास है कि गरीबी के लिए आज भी हालत ज्यादा नहीं बदले है ने केवल उन्हें मौसम की विषमताओं का सामना करना पड़ता है।
क्या उनके मामले में कोई विचार है। यह एक व्यक्ति था जिसने अकेले ही केवल हतौड़े और छैनी का उपयोग करके पहाड़ के माध्यम से एक रास्ता बनाने की जिम्मेदारी ली। जो वास्तव में सरकार की जिम्मेदारी थी। मामला संज्ञान में आने के बाद भी संबंधित अधिकारियों को कोई सहयोग नहीं मिला। जब प्रधानमंत्री ने काम के लिए पैसे मंजूर किये तो इसे भ्रष्ट अधिकारियों और जल्दी से निगल लिया। क्या धनराशि की स्वीकृति पर्याप्त है। क्या किसी परियोजन का या परियोजना की निगरानी या उसके पूरा होने तक उसका पालन करने का उनका कोई दायित्व नहीं है क्या यही न्याय था? या क्या यह न्याय था जब जाति वाद के नाम पर कमजोरी और उत्पीडि़तो पर अत्याचार किया जाता था, भले ही इसे कानून द्वारा समाप्त कर दिया हो? या यह उचित था जब साधारण ग्रामीणों को कानून को अपने हाथ में लेने के लिए मजबूर किया गया था? और क्या उन्होंने ऐसा किया होता अगर उन्हें न्यायिक व्यवस्था में विश्वास होता खैर, यह द माउन्टेन मैन की पर ओवर रियेक्शन नहीं है। बल्कि एहसास है कि गरीबी के लिए आज भी हालत ज्यादा नहीं बदले है ने केवल उन्हें मौसम की विषमताओं का सामना करना पड़ता है।
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