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created Nov 21st 2022, 15:14 by KRISHNA PRAJAPATI
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वादी का वाद संक्षेप में इस प्रकार है कि उसने वादग्रस्त भूखण्ड जिसका विवरण कंडिका में 1 दिया गया है पंजीकृत विकय्र पत्र के माध्यम से प्रतिवादी क्रमांक 1 व 2 से क्रय किया है। वादीगण का कहना है कि वादग्रस्त संपत्ति को प्रतिवादी क्रमांक 1 व 2 ने प्रतिवादी क्रमांक 6 से दिनांक 20 सितंबर, 1999 को पंजीकृत विक्रय पत्र के माध्यम से क्रय किया होगा वादग्रस्त भूखण्ड के अभिलिखित भूस्वामी है। वादीगण का कहना है कि वे मकान बनाने के लिये प्लाट ढूंढ रहे थे जिस दौरान प्रतिवादी क्रमांक 4 व 5 जो कि वादग्रस्त भूखण्ड के पास ही निवास करते है वादीगण के द्वारा उन्हें बताया गया कि प्रतिवादी क्रमांक 3 वादग्रस्त भूखण्ड को बेचने का काम कर रहा है एवं उक्त वादीगण का कहना है कि प्रतिवादी क्रमांक 3 के पास वादग्रस्त संपत्ति को बेचने बाबत् प्रतिवादी क्रमांक 1 व 2 के द्वारा उसके पक्ष में निष्पादित पंजीकृत पॉवर ऑफ अटर्नी थी। वादीगण का कहना है कि प्रतिवादी क्रमांक 3 द्वारा वादी क्रमांक 2 को वादग्रस्त भूखण्ड से संबंधित समस्त आवश्यक दस्तावेज बताये गये जिससे यह ज्ञात हुआ है कि प्रतिवादी क्रमांक 3 द्वारा प्रतिवादी क्रमांक 1 व 2 को दिनांक को 21 सितंबर, 1999 के विक्रय पत्र द्वारा वादग्रस्त भूखण्ड विक्रय किया गया था साथ ही खसरा प्रविशिष्टया विक्रय पत्रों में अलग-अलग खसरा नंबरों का उल्लेख होने से 2013 को प्रतिवादी 6 द्वारा प्रतिवादी क्रमांक 1 व 2 के पक्ष में सुधारनामा निष्पादित किया गया है। जिसमें वादीगण का कहना है कि प्रतिवादीगण द्वारा वादी के पक्ष में विक्रय पत्र निष्पादित किया गया जिसके पश्चात् वादी क्रमांक 2 वादग्रस्त भूखण्ड पर फेंसिंग लगाने का कार्य कर रहा था तब प्रतिवादीगण के अभिकर्ता द्वारा विधि विरूद्ध तरीके से उसे ऐसा करने से उसे रोका गया तब वादीगण एवं प्रतिवादगण द्वारा नजदीकी थाने में शिकायत की। वादीगण का कहना है कि वे वादग्रस्त भूखण्ड के सद्भावी क्रेता है एवं उनके द्वारा अपने मेहनत से कमाई हुई जीवन की बहुत बड़ी रकम अदा की गई एवं उनके द्वारा समस्त दस्तोजों के निरीक्षण के पश्चात् क्रय किया गया है जिस दशा में वे वांछित घोषणात्मक सहायता करने के अधिकारी है। वादीगण का कहना है कि वे वादग्रस्त भूखण्ड के शांतिपूर्ण आधिपत्य की सहायता भी करने के अधिकारी है अत: वाद प्रस्तुत कर वांछित सहायता प्रदाय किये जाने का निवेदन किया गया। प्रतिवादी क्रमांक 1 व 2 ने अपने वादोत्तर के माध्यम से वादीगण के समस्त अभिवचनों को अस्वीकार करते हुये विशिष्ट कथनों में यह व्यक्त किया है कि वे वादग्रस्त भूखण्ड के विधिक स्वामी होकर आधिपत्यधारी है जिसे उन्होने प्रतिवादी क्रमांक 6 से पंजीकृत विक्रय पत्र के माध्यम से क्रय किया है साथ ही राजस्व अभिलेखों में वादग्रस्त भूखण्ड उनके नाम पर बतौर स्वामी दर्ज है एवं वे वादग्रस्त संपत्ति का नगर निगम में आवश्यक कर भी अदा करते हैं। प्रतिवादीगण ने वादी के पक्ष में किसी प्रकार का कोई आपेक्षित विक्रय पत्र निष्पादित करने को अस्वीकार करते हुये यह व्यक्त किया है कि विक्रय पत्र पर चस्पा फोटो उनकी नहीं है।
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