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बंसोड कम्प्यूटर टायपिंग इन्स्टीट्यूट छिन्दवाड़ा म0प्र0 प्रवेश प्रारंभ (CPCT, DCA, PGDCA & TALLY)
created Sep 24th 2022, 13:42 by Sawan Ivnati
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सुप्रीम कोर्ट का यह कहना बिल्कुल जायज है कि दिल्ली एनसीआर में अत्यधिक वायु प्रदूषण के लिए पंजाब, हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाना एकमात्र कारण नहीं माना जा सकता। इसके लिए कार व अन्य वाहन भी उतना ही बड़ा कारण हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात पराली की समस्या पर सुनवाई के दौरान कही और आम लोगों को सुझाव भी दिया कि कार छोड़कर साइकिल की सवारी करना शुरू करें। अदालत की इस टिप्पणी में यह बात निहित है कि शहरी जीवन-शैली के कारण हर तरह का प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद केंद्र व राज्य सरकारों ने कई तरह से किसानों को समझाने की कोशिश की थी कि पराली न जलाएं पर इसका कोई असर नहीं हुआ। आखिरकार जब अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की समिति बनाकर इस मामले की निगरानी का जिम्मा उठाना चाहा, तब केंद्र सरकार कानून बनाने के लिए आगे आई। सरकार ने अदालत को बताया है कि इससे संबंधित काननू लाया जा रहा है जिसमें प्रदूषण फैलाने वाले को 5 साल तक जेल या एक करोड़ रूपये जुर्माना या दोनों की सजा देने का प्रावधान है। इसके बाद यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार इस मामले में सख्त हुई है। सवाल यह है कि क्या यह प्रदूषण रोकने के लिए काफी होगा। कुछ समस्याओं का समाधान सिर्फ कानून बनाकर नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा होना होता तो समाज में कई तरह के अपराध समाप्त हो चुके होते ऐसा नहीं हो सका है तो इसकी वजह भी साफ है कि समस्या कहीं और है और हम समाधान कहीं और खोज रहे हैं। यह सामाजिक चेतना का प्रश्न है समाधान भी वहीं होगा। सरकार से ज्यादा राजनीतिक दलों को इसमें भूमिका निभानी होगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि वर्तमान राजनीति अपने वोटरों की नाराजगी का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती और उन्हें शिक्षित करने के अपने कर्तव्य से मुंह चुराती रही है। इन दिनों जन भावनाओं के खिलाफ जाने वाले सभी मामले अदालतों की चौखट से टकरा रहे हैं दुर्भाग्य से प्रदूषण की समस्या भी ऐसा ही है। हो सकता है अदालत की सख्ती का कुछ असर हो जाए और एक हद तक दिल्ली एनसीआर की हवा जीवन के अनुकूल बनी रहे। यह अदालत की सख्ती का असर ही है कि वहां हवा की गुणवत्ता आज जिंदा रहने लायक बची हुई है। बसों में सीएनजी अनिवार्य करना हो या डीजल गाडि़यों पर प्रतिबंध शीर्ष अदालत की सख्ती और कुछ सजग नागरिकों की कोशिश ही मानी जाएगी। राजनीतिक दलों और सरकारों ने तो जनता को उनके हाल पर छोड़ ही दिया है।
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