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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Sep 24th 2022, 07:40 by lovelesh shrivatri


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यदि किसी मजिस्‍ट्रेट या सेशन न्‍यायालय के समक्ष किसी व्‍यक्ति के विचारण के समय उस मजिस्‍ट्रेट या न्‍यायालय को वह व्‍यक्ति विकृतचित्त और परिणामस्‍वरूप अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ प्रतीत होता है, तो वह मजिस्‍ट्रेट या न्‍यायालय प्रथमत: ऐसी चित्त विकृति और असमर्थता के तथ्‍य का विचारण करेगा और यदि उस मजिस्‍ट्रेट या न्‍यायालय का ऐसे चिकित्‍सकीय या अन्‍य साक्ष्‍य पर, जो उसके समक्ष पेश किया जाता है, विचार करने के पश्‍चात् उस तथ्‍य के बारे समाधान हो जाता है तो वह उस भाव का निष्‍कर्ष अभिलिखित करेगा और मामले में आगे की कार्यवाही मुल्‍तवी कर देगा। अभियुक्‍त का चित्त विकृति और असमर्थता के तथ्‍य का विचारण मजिस्‍ट्रेट या न्‍यायालय के समक्ष उसके विचारण का भाग समझा जाएगा।  
इस धारा में यह उल्‍लेख है कि जांच या विचारण के समय अभियुक्‍त विकृतचित्त हो, तो मजिस्‍ट्रेट या न्‍यायालय ने केवल उससे प्रश्‍न पूछेगा बल्कि उसकी विक्षिप्‍तता के बारे में चिकित्‍सकीय परीक्षण करवा कर यह पता लगाएगा कि वह वास्‍तव में विकृतचित्त है अथवा नहीं। यदि चिकित्‍सकीय परीक्षण के बिना विकृतचित्त अभियुक्‍त का विचारण किया गया है, तो इसे धारा 329 के आज्ञापक उपबंधों का उल्‍लघन माना जाएगा।  
वाद में उच्‍चतम न्‍यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि यदि परीक्षण के दौरान सेशन न्‍यायाधीश यह पाता है कि अभियुक्‍त विकृतिचित्त नहीं है, तो वह उसकी विक्षिप्‍तता के संबंध में जांच नहीं करेगा। परन्‍तु यदि उसे इस संबंध में जरा भी संदेह हो, तो वह इसकी जांच अवश्‍य करा लेगा। उच्‍चतम न्‍यायालय ने यह अभिमत भी प्रकट किया है कि सेशन न्‍यायालय में विचारण समाप्‍त हो जाने के बाद भी अभियुक्‍त अपनी चितविकृति का अभिवाक कर सकता है और अभियुक्‍त की दोषसिद्धि के बाद उसे मृत्‍युदंड दिया गया था तथा दंडादेश उच्‍च न्‍यायालय को निर्देश हेतु भेजा गया था। उच्‍च न्‍यायालय के अनुसार अभियुक्‍त स्‍पष्‍टत: विकृतचित्त था, अत: निर्देश की कार्यवाही उसके स्‍वस्‍थचित होने तक लंबित रखी जानी चाहिए थी। इसके विरूद्ध राज्‍य ने इस आधार पर अपील की कि अभियुक्‍त को चितविकृत्ति का आधार केवल विचारण की अवधि में ही उपलब्‍ध हो सकता है। परन्‍तु उच्‍चतम न्‍यायालय ने विनिश्चित कि विचारण तभी समाप्‍त माना जाएगा जब उच्‍च न्‍यायालय के समक्ष लंबित निर्देश कार्यवाही पूर्ण हो जाए।   
जब कभी कोई व्‍यक्ति व्‍यक्ति धारा 328 या धारा 329 के अधीन विकृतचित्त और अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ पाया जाता है, तब यथास्थिति, मजिस्‍ट्रेट या न्‍यायालय चाहे मामला ऐसा हो जिसमें जमानत ली जा सकती है या ऐसा हो, इस बात की पर्याप्‍त प्रतिभूति दी जाने पर उसे छोड़ सकता है कि उसकी समुचित देखरेख की जाएगी और वह अपने आप को या किसी अन्‍य व्‍यक्तिको क्षति पहुंचाने से निवारित रखा जाएगा।  

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