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created Sep 20th 2022, 09:23 by Shreebageshwar Academy
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काश कि मैं कह पाता कि पुतिन विफल होंगे और अमेरिका यूरोप काे भरपूर सप्लाई कर सकेगा। काश कि मैं लिख पाता कि पुतिन को अपनी रणनीतियों पर पछतावा होगा, क्योंकि वे रूस को चीन की एनर्जी-कॉलोनी बना रहे हैं। पुतिन को पश्र्चिमी बाजार में जो घाटा हो रहा है, उसकी भरपाई करने के लिए वे चीन को भारी छूट पर बहुत सारा तेल बेच रहे हैं। लेकिन मैं चाहकर भी ये तमाम बातें नहीं लिख सकता, क्योंकि अमेरिका और उसके यूरोपियन साथी एक कल्पना-लोक में जी रहे हैं और उन्हें लगता है कि वे जीवश्म ईधन से क्लीन रिन्यूएबल एनर्जी तक की यात्रा महज एक स्विच दबाकर पूरी कर लेंगें। मैं स्वयं अनेक वर्षो से क्लीन एनर्जी का मुखर पक्षधर रहा हूं। लेकिन केवल चाहने से कुछ नहीं हो जाता, बदलाव लाने के लिए हमें कुछ करना होता है।
बीते पांच सालों में हमने पवन और सौर ऊर्जा पर चाहे जितना निवेश किया हो, दुनिया के ऊर्जा-उपयोग का 82 प्रतिशत हिस्सा आज भी तेल, गैस और कोयला से ही मिल रहा है। इन ऊर्जा-संसाधनों की जरूरत हीटिंग, ट्रांसपोर्टेशन और इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन में होती है।
अकेले अमेरिका में 2021 में 61 प्रतिशत एनर्जी-जनरेशन कोयले और प्राकृतिक गैस की मदद से हो रहा था। एशिया, अफ्रीका और लातीन अमेरिका में एनर्जी के भूखे मध्यवर्ग का उदय हो रहा है, ऐसे में ऊर्जा की जरूरतों की पूर्ति के लिए भारी पैमानें पर नई क्लीन एनर्जी की जरूरत होगी। यह काम महज स्विच दबाने से नहीं होगा। हमें ट्रांजिशन के एक बड़े दौर से गुजरना होगा। और वैसा तभी हो सकेगा, जब हम अपनी ऊर्जा नीति में स्तार्ट थिंकिंग को अपनाएंगे।
यूक्रेन-युद्ध शुरू होने से पहले यूराेप अपनी हीटिंग और इलेक्ट्रिसिटी की जरूरतों के लिए रूस पर आश्रित था। वह रूस से अपनी जरूरत की 40 प्रतिशत प्राकृतिक गैस और 50 प्रतिशत कोयला ले रहा था। बीते सप्ताह रूस ने घोषणा की कि वह तब तक के लिए यूरोप को गैस सपलाई पर राेक लगा रहा है, जब तक कि उस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध समाप्त नहीं कर दिए जाते। पुतिन यूरोप के लिए ऑइल-शिपमेंट रोकने की भी बात कह रहे हैं। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट है कि प्राकृतिक गैस की पर्याप्त वैकल्पिक और अफोर्डेबल सप्लाई के अभाव में यूरोप में कुछ फैक्टरियां बंद हो गई हैं। कुछ यूरोपियन देशों में एनर्जी -बिल्स् में 400 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो गई है। आने वाली सर्दियों में अब लोगों को हीटिंग और ईटिंग में से किसी एक को चुनना होगा। सरकारें बड़े पैमाने पर सब्सिडी देने को मजबूर होंगी, जिससे उनका बजट गड़बड़ा जाएगा। कुछ देश फिर से कोयला जलाने की ओर लौट रहे हैं।
बीते पांच सालों में हमने पवन और सौर ऊर्जा पर चाहे जितना निवेश किया हो, दुनिया के ऊर्जा-उपयोग का 82 प्रतिशत हिस्सा आज भी तेल, गैस और कोयला से ही मिल रहा है। इन ऊर्जा-संसाधनों की जरूरत हीटिंग, ट्रांसपोर्टेशन और इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन में होती है।
अकेले अमेरिका में 2021 में 61 प्रतिशत एनर्जी-जनरेशन कोयले और प्राकृतिक गैस की मदद से हो रहा था। एशिया, अफ्रीका और लातीन अमेरिका में एनर्जी के भूखे मध्यवर्ग का उदय हो रहा है, ऐसे में ऊर्जा की जरूरतों की पूर्ति के लिए भारी पैमानें पर नई क्लीन एनर्जी की जरूरत होगी। यह काम महज स्विच दबाने से नहीं होगा। हमें ट्रांजिशन के एक बड़े दौर से गुजरना होगा। और वैसा तभी हो सकेगा, जब हम अपनी ऊर्जा नीति में स्तार्ट थिंकिंग को अपनाएंगे।
यूक्रेन-युद्ध शुरू होने से पहले यूराेप अपनी हीटिंग और इलेक्ट्रिसिटी की जरूरतों के लिए रूस पर आश्रित था। वह रूस से अपनी जरूरत की 40 प्रतिशत प्राकृतिक गैस और 50 प्रतिशत कोयला ले रहा था। बीते सप्ताह रूस ने घोषणा की कि वह तब तक के लिए यूरोप को गैस सपलाई पर राेक लगा रहा है, जब तक कि उस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध समाप्त नहीं कर दिए जाते। पुतिन यूरोप के लिए ऑइल-शिपमेंट रोकने की भी बात कह रहे हैं। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट है कि प्राकृतिक गैस की पर्याप्त वैकल्पिक और अफोर्डेबल सप्लाई के अभाव में यूरोप में कुछ फैक्टरियां बंद हो गई हैं। कुछ यूरोपियन देशों में एनर्जी -बिल्स् में 400 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो गई है। आने वाली सर्दियों में अब लोगों को हीटिंग और ईटिंग में से किसी एक को चुनना होगा। सरकारें बड़े पैमाने पर सब्सिडी देने को मजबूर होंगी, जिससे उनका बजट गड़बड़ा जाएगा। कुछ देश फिर से कोयला जलाने की ओर लौट रहे हैं।
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