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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Sep 19th 2022, 06:55 by lucky shrivatri
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मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से चीतों का आगमन हो ही गया। भारत से 1952 में लुप्त घोषित किए जा चुके इस जीव को देश की जमीन पर फिर दौड़ लगाते देखने के लिए हमें सात दशक लंबा इंतजार करना पड़ा। नामीबिया से आठ चीतों का कुनबा कूनो राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचने के बाद भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश बन गया है, जहां बिग कैट प्रजाति के पांचों सदस्य- शेर, बाघ, तेंदुआ, हिम तेंदुआ और चीता हैं। भारत में चीतों के नए सिरे से पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार के चीता प्रोजेक्ट पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि एक स्थान से दूसरे स्थान पर चीतों को बसाने में कई देशों का अनुभव उत्साहजनक नहीं रहा।
पहली बार चीतों को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में बसाने के प्रयास भारत ने शुरू किए हैं। चीता प्रोजेक्ट के तहत अगले पांच साल में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के 50 चीतों को भारत में बसाने की तैयारी है। अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा, तो वन्य जीव संपदा और जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में यह बहुत बड़ी अंंतरराष्ट्रीय उपलब्धि होगी। भारत के चीता प्रोजेक्ट के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीते भारतीय जमीन और जलवायु में खुद को कितना ढाल पाएंगे, इसको लेकर वन संपदा विशेषज्ञ काफी पहले से सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि चीते की आबादी घटने का एक कारण यह है कि तेज रफ्तार में दौड़ने की उनकी प्रकृति के हिसाब से उनके लिए भूगोल की सीमा घटती गई। दुनिया में इस समय करीब सात हजार चीतों में से ज्यादातर दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में आबाद हैं। वहां इन्हें दौड़ लगाने के लिए ज्यादा लंबी खुली जगह उपलब्ध हैं। भारतीय उद्यान के सीमित क्षेत्रफल में ये चीते कितना समायोजित हो पाएंगे, देखना बाकी है। बड़ी चुनौती दूसरे जानवरों से चीतों की रक्षा भी है। चीता अपेक्षाकृत कम आक्रामक जानवर है। वह शिकार करने से ज्यादा खुद शिकार होता है।
अफ्रीका में तेंदुओं ने कई चीतों का शिकार किया। कूनो राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में पहले से आबाद 50 तेंदुए मेहमान चीतों के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं। भेडियों, लकड़बग्घों और जंगली श्वानों से भी उन्हें बचाना होगा। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि चीतों के कारण उद्यान के आसपास के इलाकों लोगों को परेशानी न हो। कूनो में चीतों को उनकी प्रकृति के हिसाब से वातावरण देने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा और प्रजनन की ठोस रणनीति जरूरी है। ठोस रणनीति के दम पर ही भारत में शेरों व बाघों की आबादी बढ़ाने की परियोजनाएं कामयाब रही हैं। चीतों के मामलें में भी देश नया इतिहास रच सकता है।
पहली बार चीतों को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में बसाने के प्रयास भारत ने शुरू किए हैं। चीता प्रोजेक्ट के तहत अगले पांच साल में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के 50 चीतों को भारत में बसाने की तैयारी है। अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा, तो वन्य जीव संपदा और जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में यह बहुत बड़ी अंंतरराष्ट्रीय उपलब्धि होगी। भारत के चीता प्रोजेक्ट के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीते भारतीय जमीन और जलवायु में खुद को कितना ढाल पाएंगे, इसको लेकर वन संपदा विशेषज्ञ काफी पहले से सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि चीते की आबादी घटने का एक कारण यह है कि तेज रफ्तार में दौड़ने की उनकी प्रकृति के हिसाब से उनके लिए भूगोल की सीमा घटती गई। दुनिया में इस समय करीब सात हजार चीतों में से ज्यादातर दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में आबाद हैं। वहां इन्हें दौड़ लगाने के लिए ज्यादा लंबी खुली जगह उपलब्ध हैं। भारतीय उद्यान के सीमित क्षेत्रफल में ये चीते कितना समायोजित हो पाएंगे, देखना बाकी है। बड़ी चुनौती दूसरे जानवरों से चीतों की रक्षा भी है। चीता अपेक्षाकृत कम आक्रामक जानवर है। वह शिकार करने से ज्यादा खुद शिकार होता है।
अफ्रीका में तेंदुओं ने कई चीतों का शिकार किया। कूनो राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में पहले से आबाद 50 तेंदुए मेहमान चीतों के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं। भेडियों, लकड़बग्घों और जंगली श्वानों से भी उन्हें बचाना होगा। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि चीतों के कारण उद्यान के आसपास के इलाकों लोगों को परेशानी न हो। कूनो में चीतों को उनकी प्रकृति के हिसाब से वातावरण देने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा और प्रजनन की ठोस रणनीति जरूरी है। ठोस रणनीति के दम पर ही भारत में शेरों व बाघों की आबादी बढ़ाने की परियोजनाएं कामयाब रही हैं। चीतों के मामलें में भी देश नया इतिहास रच सकता है।
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