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SHAHID MANSOORI, MP HIGH COURT ag3 hindi typing with zero error, khurai, sagar,m.p.

created Jul 28th 2022, 05:29 by shahidman009238


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न्‍यायालय के समक्ष चौथे प्रत्‍यर्थी द्वारा फाइल की गई पांच याचिकाएं नियमों द्वारा यथा अनुध्‍यात हस्‍ताक्षरित और सत्‍यापित हैं। याचिकाओं में प्रत्‍येक के साथ दस्‍तावेज अर्थात् संबंधित रिट याची द्वारा हस्‍ताक्षरित घोषणा संलग्‍न है। यह दस्‍तावेज चौथे प्रत्‍यर्थी द्वारा हस्‍ताक्षरित है यद्यपि सत्‍यापन की कमी है। याचियों के विद्वान काउंसेल ने मामले का अवलंब लेते हुए यह दलील दी कि अध्‍यक्ष को नियमावली के नियम 7 के उपनियम 2 के उपबंधों के आधार पर नियम 6 के उपनियम 7 के अनुरूप होने के कारण पांच याचिकाओं को खारिज करने के सिवाए कोई विकल्‍प नहीं था। इस विनिश्‍चय में प्रशांत और पुनीत के मामले में अधिकथित इस सिद्धांत का अनुसरण किया गया था कि जहां शक्ति निश्चित रूप से कोई निश्चित बात करने के लिए दी गई हो वहां वह उस रीति में अवश्‍य ही किया जाना चाहिए अथवा बिल्‍कुल भी नहीं किया जाना चाहिए। काम करने की कोई अन्‍य पद्धति अनिवार्य रूप से प्रतिषिद्ध है। प्रदीप और वसीम के मामले में ऐसे मजिस्‍ट्रेट को की गई ऐसी संस्‍वीकृति के मामले से संबंधित है जो भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 396 के अधीन अधिरोपित अभियुक्‍त की दोषसिद्धि के लिए मुख्‍य आधार है। पुलिस के आवेदन करने पर मजिस्‍ट्रेट डकैती के स्‍थान पर गया और अभियुक्‍त द्वारा अपराध में फंसाने वाले उन स्‍थानों पर भी ले गया था जो घटना से संबंधित घटनाओं के लिए तात्विक थे मजिस्‍ट्रेट ने उन बातों के कच्‍चे टिप्‍पण तैयार किए थे। जो उसे अभियुक्‍त द्वारा कही गई थी तथा उन्‍हें टाइपिस्‍ट को लिखाने के पश्‍चात् नष्‍ट कर दिया गया था। उनके द्वारा हस्‍ताक्षरित ज्ञापन साक्ष्‍य के रूप में न्‍यायालय में पेश किया गया था। उसमें उन सब बातों का सार था और कि उन सभी अन्‍य सामग्री का जो उन्‍हें मौखिक रूप से कहीं गई थी। कथन तात्‍पर्यित रूप से दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के अधीन किया गया था किंतु तात्विक समय पर अस्तित्‍व में कोई अभिलेख नहीं था तथा अभियुक्‍त को दिखाने के लिए या पढ़े जाने के लिए कोई बात नहीं थी तथा वह किसी बात पर हस्‍ताक्षर नहीं कर सकता था अथवा हस्‍ताक्षर करने से इंकार नहीं कर सकता है।

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