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सॉंई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Jul 2nd 2022, 03:38 by lucky shrivatri


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महाराष्‍ट्र के सियासी ड्रामे में फिर एक नया मोड़ आया है। उद्धव ठाकरे के इस्‍तीफे बाद माना जा रहा था कि भाजपा नेता देवेद्र फडणवीस तीसरी बार मुख्‍यमंत्री बन सकते हैं, लेकिन फडणवीस ने ही घोषणा की है कि एकनाथ शिंदे मुख्‍यमंत्री होंगे। शिंदे ने ऑटोरिक्‍शा से सीएम कार्यालय तक का सफर तय किया है। शिंदे बार-बार यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि यह घटनाक्रम बगावत नहीं, पार्टी को पटरी पर लाने की कवायद है। नए सियासी समीकरण अगले कुछ दिनों में सामने आएंगे। कि अब  भाजपा को इसका प्रत्‍यक्ष तो राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को परोक्ष फायदा होगा। छोटे भाई से बडे-भाई तक का कद हासिल करने के बाद अब महाराष्‍ट्र में भाजपा ही प्रखर हिंदुत्‍व की एकमात्र छतरी रह जाएगी। शिवसेना के बागी विधायकों सहित राज ठाकरे की मनसे भी उसी छतरी के नीचे विश्राम करेगी। मात्र 15 विधायकों के साथ उद्धव ठाकरे को अब पार्टी और संगठन में प्रााण फूंकने का नया और मुश्किल जतन करना होगा। उद्धव की अगली परीक्षा सितंबर में होने वाले मुंबई महानगर निगम चुनाव (बीएसी) में होगी। शिवसेना के बागियों को डर सता रहा था कि आगामी चुनाव में उन्‍हें प्रखर हिंदुत्‍व का विरोधी करार दे दिया जाए। शिवसेना की यही थती रही है, जिसे गंवाने के बाद कोई चुनावी जीत का सपना कैसे देख सकता था? उद्धव ठाकरे समझ गए थे कि समान राजनीतिक जमीन पर खड़ी भाजपा की देशव्‍यापी अपील के आगे उनकी धार कुंद पड़ रही है। इसलिए शायद उन्‍होंने किंग मेकर की बजाए किंग बनकर अपना कद ऊंचा करना चाहा था, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। बदले समीकरण का एनसीपी ने ज्‍यादा फायदा उठाया। अब राज्‍य की सियासत दो राजनीतिक ध्रूवों में बंटती दिख रही है। एक हिंदुत्‍व की छतरी के नीचे, तो दूसरी इस छतरी के बाहर। दोनों ध्रूवों के बीच कांग्रेस की दुविधा उसे दौड़ से बाहर करती जा रही है। आने वाले दिनों में अन्‍य राज्‍यों की सियासत भी दो पाटों में बंटती दिख सकती है। कुछ राज्‍यों में तो पहले से ही बंटी हुई है। यह भी दखि रहा है कि एक ध्रूव काफी नियोजित, व्‍यवस्थित, संसाधनयुक्‍त और फुर्तीला है  तो दूसरा ध्रूव दुविधाग्रस्‍त, अनियोजित, अव्‍यवस्थित और सुस्‍त। यह स्थिति एक ध्रूवीय राजनीति की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। जबकि, लोकतंत्र की मजबूती के लिए बहुध्रूवीय राजनीति जरूरी है।  
 

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