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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jul 2nd 2022, 03:05 by Jyotishrivatri
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अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन के कैंसर को लेकर शुरू किए गए अभियान को खाद्य एवं औषधि प्रशासन एफडीए से अच्छा खासा समर्थन मिला है। इसका श्रेय धूम्रपान के लिए एफडीए के आक्रामक रवैए को जाता है। हाल ही लाए गए तीन प्रस्ताव कई लोगों को जान बचाने की क्षमता रखते हैं। ये हैं-सिगरेट में निकोटिन की मात्रा कम करना, ई-सिगरेट निर्माता को आदेश देना कि वह बाजार से अपने सारे उत्पाद हटा ले और मेंथॉल फ्लेवर की सिगरेट पर पाबंदी लगाना। हर साल करीब 5 लाख अमरीकियों की मौत धूम्रपान संबंधी बीमारियों के कारण होती है। यह संख्या कोविड-19 से एक साल में होने वाली मौंतों की संख्या से अधिक है। कैंसर से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है-धूम्रपान। हर साल 1,60,
000 लोग कैंसर से मर रहे हैं, जिसका सीधा कारण तम्बाकू है। एफडीए कमीश्नर रॉबर्ट कलिफ ने गत सप्ताह एक सम्मेलन में बताया कि सिगरेट में निकोटिन कम करने का एजेंसी का प्रस्ताव निकोटिन की उच्चस्तरीय लत लगाने वाली क्षमता पर आधारित है। सिगरेट कम्पनियां जानबूझ कर तम्बाकू उत्पादों में भारी मात्रा में निकोटिन डालती है, ताकि धूम्रपान के आदी लोग तलब मिटाने के लिए ज्यादा सिगरेट फूंके। एफडीए का कहना है इसके विपरीत अगर सिगरेट में निकोटिन की मात्रा कम होगी, तो धूम्रपान करने वाले लोग या तो इसे छोड़ देंगे या किसी दूसरे उत्पाद का सेवन करने लगेंगे
जो सिगरेट जैसे कैंसरकारी न हों। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन ने एक परीक्षण में पाया कि जिन लोगों को कम निकोटिन वाली सिगरेट पीने के लिए दी गई वे उन लोगों के मुकाबले कम सिगरेट पीते देखे गए, जिन्हें सामान्य मात्रा में निकोटिन वाली सिगरेट पीने के लिए दी गई। छह सप्ताह बाद पाया गया कि पहले समूह के लोगों में निकोटिन पर निर्भरता के लक्षण कम पाए गए। साथ ही उनमें सिगरेट छोड़ने में असहजता भी सबसे कम पाई गई। इसी जर्नल में प्रकाशित अन्य अध्ययन में बताया गया है कि निकोटिन की मात्रा कम करने से अगले 80 सालों में 8 मिलियन मौतें कम होने की संभावना है। अमरीकी कैंसर सोसायटी में पूर्व मुख्य चिकित्सा एवं विज्ञान अधिकारी ऑटिस ब्रॉलेट के अनुसार शोध में पता चला है कि सिगरेट के तम्बाकू में जितना ज्यादा निकोटिन होगा, उतना ही लोग इसका अधिक सेवन करेंगे। तम्बाकू कम्पनियां भी इस प्रस्ताव को पंसद नहीं करती और अपरिहार्य रूप से धूम्रपान को स्वतंत्र इच्छा से चुना गया विकल्प बताती है। कैलिफ के अनुसार लत लगना एक बीमारी है, जो दिमाग का रसायन बदल देती है। इसलिए यहां बात इच्छा की नहीं है। बहुत से लोग धूम्रपान छोड़ना चाहतें हैं, लेकिन छोड़ नहीं सकते। धूम्रपान छोड़ने वालों की मदद करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना धूम्रपान न करने वालों को पहले चरण पर रोकना। युवाओं में ई-सिगरेट एक महामारी बन चुकी है। हर चार में से एक हाई स्कूल छात्र इसका सेवन करता है। ई-सिगरेट बाजार के एक तिहाई हिस्से पर प्रभुत्व वाली कम्पनी जुल पर कार्टून नेटवर्क और निकलोडियन पर विज्ञापनों के जरिए बच्चों को ग्राहक बनाने के आरोप लग रहे है। उनके उत्पादों में भारी नीकोटीन पाया जाता है।
000 लोग कैंसर से मर रहे हैं, जिसका सीधा कारण तम्बाकू है। एफडीए कमीश्नर रॉबर्ट कलिफ ने गत सप्ताह एक सम्मेलन में बताया कि सिगरेट में निकोटिन कम करने का एजेंसी का प्रस्ताव निकोटिन की उच्चस्तरीय लत लगाने वाली क्षमता पर आधारित है। सिगरेट कम्पनियां जानबूझ कर तम्बाकू उत्पादों में भारी मात्रा में निकोटिन डालती है, ताकि धूम्रपान के आदी लोग तलब मिटाने के लिए ज्यादा सिगरेट फूंके। एफडीए का कहना है इसके विपरीत अगर सिगरेट में निकोटिन की मात्रा कम होगी, तो धूम्रपान करने वाले लोग या तो इसे छोड़ देंगे या किसी दूसरे उत्पाद का सेवन करने लगेंगे
जो सिगरेट जैसे कैंसरकारी न हों। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन ने एक परीक्षण में पाया कि जिन लोगों को कम निकोटिन वाली सिगरेट पीने के लिए दी गई वे उन लोगों के मुकाबले कम सिगरेट पीते देखे गए, जिन्हें सामान्य मात्रा में निकोटिन वाली सिगरेट पीने के लिए दी गई। छह सप्ताह बाद पाया गया कि पहले समूह के लोगों में निकोटिन पर निर्भरता के लक्षण कम पाए गए। साथ ही उनमें सिगरेट छोड़ने में असहजता भी सबसे कम पाई गई। इसी जर्नल में प्रकाशित अन्य अध्ययन में बताया गया है कि निकोटिन की मात्रा कम करने से अगले 80 सालों में 8 मिलियन मौतें कम होने की संभावना है। अमरीकी कैंसर सोसायटी में पूर्व मुख्य चिकित्सा एवं विज्ञान अधिकारी ऑटिस ब्रॉलेट के अनुसार शोध में पता चला है कि सिगरेट के तम्बाकू में जितना ज्यादा निकोटिन होगा, उतना ही लोग इसका अधिक सेवन करेंगे। तम्बाकू कम्पनियां भी इस प्रस्ताव को पंसद नहीं करती और अपरिहार्य रूप से धूम्रपान को स्वतंत्र इच्छा से चुना गया विकल्प बताती है। कैलिफ के अनुसार लत लगना एक बीमारी है, जो दिमाग का रसायन बदल देती है। इसलिए यहां बात इच्छा की नहीं है। बहुत से लोग धूम्रपान छोड़ना चाहतें हैं, लेकिन छोड़ नहीं सकते। धूम्रपान छोड़ने वालों की मदद करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना धूम्रपान न करने वालों को पहले चरण पर रोकना। युवाओं में ई-सिगरेट एक महामारी बन चुकी है। हर चार में से एक हाई स्कूल छात्र इसका सेवन करता है। ई-सिगरेट बाजार के एक तिहाई हिस्से पर प्रभुत्व वाली कम्पनी जुल पर कार्टून नेटवर्क और निकलोडियन पर विज्ञापनों के जरिए बच्चों को ग्राहक बनाने के आरोप लग रहे है। उनके उत्पादों में भारी नीकोटीन पाया जाता है।
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