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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jun 22nd 2022, 06:18 by sandhya shrivatri
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बढ़ती महंगाई दर और दुनियाभर के शेयर बाजारों का धड़ाम होना क्या किसी खतरे की घंटी है या फिर इसे कोरोना के बाद का असर और रूस-यूक्रेन युद्ध का परिणाम माना जाए? आर्थिक जानकारों के लिए अभी यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि क्या सचमुच दुनिया फिर आर्थिक मंदी की तरफ जा रही है। पर चिंताजनक तथ्य यह है कि अमरीका और भारत ही नहीं, तमाम देशों के शेयर बाजार पिछले छह माह के दौरान लुढ़कते नजर आ रहे है। हालात यह है कि भारतीय बाजार 20 फीसदी तो अमरीकी बाजार 20 से 30 फीसदी गोता लगा चुके है।
अमरीका में चार दशक बाद की सबसे चिंताजनक महंगाई दर ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा रखी है। तेल के दामों में उठापटक और डॉलर के मुकाबले रूपए का लगातार कमजोर होना हमारे लिए तो वाकई बड़ी चिंता के कारण माने जा सकते है। बड़ा सवाल यह है कि सामने खड़े संकट से निपटने के लिए हम कितने तैयार है। कोरोना महामारी से उपजी आर्थिक परेशानी दूर भी नहीं हई थी कि रूपस ने यूक्रेन पर हमला करके नई मुसीबतों को न्योता दें डाला। आज दुनियाभर में रोजगार के घटते अवसर बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहे है। डेढ़ दशक पहले दुनिया में छाई आर्थिक मंदी को लोग भूले नहीं है। अंतरराष्ट्रीय एजेसिया भले ही भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ने का अनुमान लगा रही हो, पर जमीन पर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। दुनिया की आर्थिक उथल-पुथल का असर हम पर पड़ना निश्चित है लेकिन हमें अपनी जरूरतों के लिए नए विकल्पों पर ध्यान देना होगा। तेल और गैस के मामलों में अपने पैरों पर खड़े होने की तैयारी तेज करनी होगी। निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ स्टार्टअप जैसी योजनाओं को और व्यावहारिक बनाने पर भी देना होगा। मेक इन इंडिया का नारा, नारा बनकर नहीं रह जाए, इसकी चिंता भी करनी होगी। रोजगार की आस युवाओं के टूटते धैर्य को उनके नजरिए से ही देखने की जरूरत है। तभी हम दुनिया के ताकतवर देशों की सूची में शामिल होने के सपने को साकार कर पाएंगे।
अमरीका में चार दशक बाद की सबसे चिंताजनक महंगाई दर ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा रखी है। तेल के दामों में उठापटक और डॉलर के मुकाबले रूपए का लगातार कमजोर होना हमारे लिए तो वाकई बड़ी चिंता के कारण माने जा सकते है। बड़ा सवाल यह है कि सामने खड़े संकट से निपटने के लिए हम कितने तैयार है। कोरोना महामारी से उपजी आर्थिक परेशानी दूर भी नहीं हई थी कि रूपस ने यूक्रेन पर हमला करके नई मुसीबतों को न्योता दें डाला। आज दुनियाभर में रोजगार के घटते अवसर बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहे है। डेढ़ दशक पहले दुनिया में छाई आर्थिक मंदी को लोग भूले नहीं है। अंतरराष्ट्रीय एजेसिया भले ही भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ने का अनुमान लगा रही हो, पर जमीन पर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। दुनिया की आर्थिक उथल-पुथल का असर हम पर पड़ना निश्चित है लेकिन हमें अपनी जरूरतों के लिए नए विकल्पों पर ध्यान देना होगा। तेल और गैस के मामलों में अपने पैरों पर खड़े होने की तैयारी तेज करनी होगी। निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ स्टार्टअप जैसी योजनाओं को और व्यावहारिक बनाने पर भी देना होगा। मेक इन इंडिया का नारा, नारा बनकर नहीं रह जाए, इसकी चिंता भी करनी होगी। रोजगार की आस युवाओं के टूटते धैर्य को उनके नजरिए से ही देखने की जरूरत है। तभी हम दुनिया के ताकतवर देशों की सूची में शामिल होने के सपने को साकार कर पाएंगे।
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