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created Jun 22nd 2022, 05:13 by Sawan Ivnati


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एक बड़ा सा राजमहल था, जिसके द्वार पर एक साधु आया और वो साधु द्वारपाल से आकर कहने लगा कि अंदर जाकर राजा से कहो कि उनका भाई उनसे मिलने आया है। द्वारपाल सोचने लग गया कि ये साधु के भेस में राजा से कौन मिलने आया है जो राजा को अपना भाई बता रहा है। फिर द्वारपाल ने समझा कि क्‍या पता कोई दूर का रिश्‍तेदार हो जिसने सन्‍यास ले लिया हो। द्वारपाल ने अंदर जाकर सूचना दी जिसके बाद राजा मुस्‍कुराने लगे और उन्‍होंने कहा कि साधु को अंदर भेज दो। साधु ने पूछा, कैसे हो भैया राजा ने जवाब दिया, मैं ठीक हूं, तुम बताओ, तुम कैसे हो? साधु ने राजा को कहा कि, मैं जिस महल में रहता हूँ वो बहुत ही ज्‍यादा पुराना हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। यहाँ तक की मेरे 32 नौकर थे वो भी एक-एक करके चले गए। ये सब सुनकर राजा ने साधु को 10 सोने के सिक्‍के देने का आदेश दिया। पर साधु ने कहा 10 सोने के सिक्‍के तो कम है। ये सुनकर राजा ने कहा कि अभी तो इतना ही है तुम इससे काम चलाओ इसके बाद साधु वहॉं से चला गया। साधु को देखकर मंत्रियो के मन में भी कई सवाल उठ रहे थे, उन्‍होंने राजा से कहा कि जितना हमे पता है आपका तो कोई भाई नहीं है तो अपने उस साधु को इतना बड़ा इनाम क्‍यों दिया? राजा ने जवाब देते हुए कहा, देखो भाग्‍य के दो पहलू होते है राजा और रंक, इस नाते उसने मुझे भाई बोला। राजा ने समझते हुए कहा कि जर्जर महल से उसका मतलब उसका बूढ़ा शरीर था, 32 नौकर से उसका मतलब 32 दॉंत थे। समंदर के बहाने उसने मुझे उलाझना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा राजकोष सुख गया, क्‍योंकि मैं मात्र उसे दस सोने के सिक्‍के दे रहा था जबकि मेरी हैसियत उसे सोने से तोल देने की है। इसलिए राजा ने ऐलान किया कि मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्‍त करुँगा। किसी व्‍यक्ति के बाहरी रंग रूप से उसकी बुद्धिमत्‍ता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।

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