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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created May 24th 2022, 10:15 by Shankar D.


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भीषण गर्मी में चाय की चर्चा थोड़ी विचित्र लग सकती है पर वह चाय और वह गांव गर्मी में इसलिए याद रहा है क्‍योंकि वहां आप गर्मी शुरू होने पर ही जा सकते हैं! गांव के लोग भी इन्‍हीं दिनों अपने गांव लौट कर अपने बंद घरों के दरवाजे खोलते हैं! है हैरत की बात! गांव का नाम है माणा, जिसे माना भी कहते हैं। बद्रीनाथ से सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी पर यह गांव भारत और चीन की तिब्‍बत के साथ जुड़ी सीमा पर आखिरी गांव है। यहां रहने वाले मार्छा भोटिया सदियों से घुमक्‍कड़ रहे हैं। 1962 में तिब्‍बत के चीन के अधिकार में आने से पहले ये लोग तिब्‍बत से नमक, बोरेक्‍स, भेड़, बकरी और खच्‍चर का व्‍यापार करते थे। जब सीमा पार जाना रोक दिया गया तो इनका जीवन बद्रीनाथ की यात्रा और उतरांचल के पर्यटन से ऐसा जुड़ा कि अब यह 'धरोहर गांव' घोषित हो गया है। ये लोग अब मई में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने के साथ ही यहां आते हैं और नवम्‍बर में मंदिर के कपाट बंद होने पर दक्षिण की ओर गोपेश्वर लौट कर सर्दियों में वहां डेरा डालते हैं। जाहिर है कि इन लोगो के जीवनयापन में भी अब काफी बदलाव चुका है। भूटिया समूह सदियों से जड़ी-बूटियों से इलाज करता रहा है जिन्‍हें समूह के लोग वनों से लाते थे। वन नियमों से इस कार्य में रुकावट आने के कारण अब उनकी जानकारी भी वजूद खोती जा रही है। अब वे लोग गर्मी में आलू, राजमा, राई, कुट्टू आदि की खेतीबाड़ी करते हैं और हाथ से बुने सामान और नमदे की तरह के गलीचे बेचते हैं। एक के बाद एक आपको भूटिया औरतें ही नहीं, आदमी भी कुछ कुछ बुनते दिखाई दे जाते हैं। आदमियों को बुनाई करते देख करते देख मुझे उन गढ़वाली सिपाहियों और फौजियों की याद गई, जिन्‍हें मैंने बचपन में पहली बार बुनाई करते देख कर अपनी मां से आदमियों के बुनाई करने पर आश्‍चर्य प्रकट किया था। खैर एक सिलाई सालों बाद माना गांव में जब बुनी तो वे औरतें मुझे हैरत से देख रही थी। भू‍टिया लोगों के कारण ही इसे पर्यटन गांव और धरोहर घोषित कर के यहां का रखरखाव किया जा रहा है,पर एक बात मुझे केवल यहां खटकी बल्कि हर उस जगह खटकती है जहां पैदल चलने वालों के लिए सीमेंट की ईंटें रख कर रास्‍ता तैयार किया जाता है। ईंटें सब ऊंची-नीची होती रहती हैं और लोगो का चलना मुश्किल हो जाता है। माना गांव में यात्री दो मंदिरों और सरस्‍वती नदी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। तीनों का पौराणिक महत्त्व है और यही पहुंच कर आप उनसे जुड़ी दंतकथाओं को सुनते हैं। यहीं पर महर्षि वेदव्‍यास ने वेदों की और महाभारत की मौखिक रचना की तो गणेशजी ने उन्‍हें कलमबद्ध किया। सरस्‍वती यहां पर पांडवों ने स्‍वर्ग की सीढि़यां चढ़ी जब भीम ने बड़ी चट्टान रख सरस्‍वती नदी पर पुल बनाया। सब कुछ देखने और भू‍टिया लोगों से बतियाने के बाद मैं पहुंची उस चाय की दुकान पर, जिसकी तस्‍वीर लिए बिना यह सफर पूरा नहीं होता। लोगों के लिए यह अब बेशकीमती सेल्‍फी पॉइंट बन चुका है। खैर मैंने पहली तस्‍वीर उस छात्र की ली, जिसने सालों पहले इस साल की उम्र मे यह दुकान पढ़ाई के लिए पैसा जुटाने के लिए खोली थी।

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