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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 23rd 2022, 08:57 by sandhya shrivatri
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यह सिविल अपील विचारण न्यायालय प्रथम व्यवहार न्यायाधीश वर्ग के व्यवहार वाद क्रमांक 472/1991 के निर्णय दिनांक 0-11-1996 के विरुद्ध अपीलार्थी द्वारा धारा 96 सी.पी.सी. के अंतर्गत पेश की गई है। प्रकरण के तथ्य संक्षिप्ति में इस प्रकार है कि विचारण न्यायालय के समक्ष मूल वादी विनोद एवं किशोरलाल के द्वारा वाद पत्र विशिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा, 5, 34 और 38 के अंतर्गत विक्रय पत्र दिनांक 28-09-1992 को शून्य घोषित किए जाने के लिए पेश किया था। वादी उक्त भूमि को मूल भूमिस्वामी विजय सिंह, कृष्ण के पक्ष में विक्रय करना चाहता था परन्तु वह आदिवासी होने के कारण आवेदन फाइल करने के लिए नियमों से बंधा था, क्योंकि इसके लिए कलेक्टर की अनुमति आवश्यक थी इस कारण कृष्ण ने वादी सुरेश के नाम नामान्तरण करा दिया था। विक्रय धन कृष्ण ने ही दिया था, कब्जा भी कृष्ण का ही रहा। वादी पूर्ण रूप से अनपढ़ व्यक्ति होने से कोई भी भूमि क्रय करने की स्थिति में नहीं था। प्रतिवादी क्रमांक 1, प्रतिवादी क्रमांक 2 और 3 के साथ ही रहता है, जो गांव के प्रभावी व्यक्ति हैं। प्रतिवादी क्रमांक 2 ने वादी से गाय लाने के लिए बोल कर वादी को अपने साथ ले जाकर 01 दस्तावेज पर अंगूठा लगवा दिया और बोला कि पेंशन की राशि तुम्हारे खाते में आ जायेगी। वादी उनका षड़यंत्र नहीं समझ पाया और बिना सादे कागज पर अंगूठा पेंशन को कागज मानते हुए लगा दिया परन्तु वास्तव में इस प्रकार धोखे से वादी ने भूमि का विक्रय विलेख प्रतिवादी क्रमांक 1 लगायत 3 ने निष्पादित करा दिया था। खेती-बाड़ी के लिए गांव के कृष्ण को मुख्त्यार नियुक्ति किया था तब से सूर्यकांत ही उक्त भूमि पर खेती-बाड़ी करने लगा। विवादित भूमि पर इस प्रकार काफी सुधार कार्य भी किए गए। प्रतिवादीगण क्रमांक 2 एवं 3 सूर्यकांत को मना करते हुए विवादित भूमि अपने स्वामित्व की बताने आए तब विक्रय पत्र की जानकारी वादी को हुई, तब वादी ने विवादित भूमि को विधि अनुसार प्रतिफल प्राप्त कर दिनांक 06-04-1992 को भंवरलाल को विक्रय किया। मौके पर सूर्यकांत के भाई लीलाधर काबिज बने रहे हैं। वादी ने वास्तव में प्रतिवादी क्रमांक 1 से न तो कभी कोई प्रतिफल लिया है न ही उसके पक्ष में विक्रय पत्र निष्पादन किया है, इन परिस्थितियों में न्यायालय में दावा पेश कर विवादित विक्रय पत्र दिनांक 24-06-1990 को अवैध एवं शून्य घोषित कराने के लिए यह दावा प्रस्तुत किया है।
अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष प्रतिवादीगण क्रमांक 1 लगायत 3 की ओर से जबावदावा पेश कर यह अभिवचन किया गया है कि प्रतिवादी क्रमांक 1 ने वादी से, 1,60,000/- रुपए देकर रजिस्टर्ड विक्रय पत्र दिनांक संख्या 07-02-1993 को निष्पादित कराया है और मौके पर काबिज भी है। निर्धन होने से वह नामान्तरण नहीं करा पाया जिसका लाभ वादी ने तुरंत भंवरलाल के पक्ष में दिनांक 11-09-1995 को विक्रय पत्र का निष्पादन कर दिया। दावे के अन्य सभी विपरीत अभिवचनों से इंकार किया गया है। यह भी बताया गया है कि पंजीयन के समय साक्षीगण एवं क्रेता-विक्रेता का फोटो भी चश्पा किया जाता रहा है। इस संबंध में गलत आक्षेप लगाए गए हैं।
अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष प्रतिवादीगण क्रमांक 1 लगायत 3 की ओर से जबावदावा पेश कर यह अभिवचन किया गया है कि प्रतिवादी क्रमांक 1 ने वादी से, 1,60,000/- रुपए देकर रजिस्टर्ड विक्रय पत्र दिनांक संख्या 07-02-1993 को निष्पादित कराया है और मौके पर काबिज भी है। निर्धन होने से वह नामान्तरण नहीं करा पाया जिसका लाभ वादी ने तुरंत भंवरलाल के पक्ष में दिनांक 11-09-1995 को विक्रय पत्र का निष्पादन कर दिया। दावे के अन्य सभी विपरीत अभिवचनों से इंकार किया गया है। यह भी बताया गया है कि पंजीयन के समय साक्षीगण एवं क्रेता-विक्रेता का फोटो भी चश्पा किया जाता रहा है। इस संबंध में गलत आक्षेप लगाए गए हैं।
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