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DURGA TYPING CENTER (उच्च न्यायालय)
created May 23rd 2022, 08:07 by gl001
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धारा 34 के प्रवर्तन के लिये घटनास्थल पर अभियुक्त की उपस्थिति आवश्यक है। के मामले में दिनांक 1 अक्टूबर 1981 को रात्रि लगभग 8 बजे जब द लगभग 500 रुपये लिये घर वापस आ रहा था तो अ एवं ब ने उसका पीछा किया और चोरी करने के उद्देश्य से अ ने द के सर पर एक छड़ से मारा और जब वह बेहोश होकर गिर गया तो उसके रुपयों की चोरी कर ली। ब को भी अ के साथ चोरी के अपराध में अभियोजित किया गया। ब के विरुद्ध मात्र ये साक्ष्य था कि उसे द और य ने घटना के पूर्व अ के साथ देखा था और वह उनके आगे-आगे चल रहा था। जब द ने टार्च जलाई और उसके उजाले में दोनों को पहचान लिया तो दोनों ही सड़क के किनारे गये। कुछ दूर आगे बढ़ने पर जब द ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे अ ने मारा और वह गिर गया। ब की समय अ के साथ उपस्थिति के बारे में उसने कोई जिक्र नहीं किया। यह निर्णय दिया गया कि ब की उस अपराध में भागीदारी के विषय में मात्र इतना ही साक्ष्य था कि वह घटना के पूर्व उसके साथ देखा गया था। केवल इतना ही साक्ष्य बिना इस बात के प्रमाण के कि ब अपराध कारित किये जाने में सहभागी था अथवा समय मौजूद था उसका सामान्य आशय सिद्ध करने हेतु यथेष्ट नहीं है। अतएव ब इस अपराध का दोषी है। वाद में चार व्यक्ति बन्दूकों से लैस होकर प के घर को लूटने गये। प अनुपस्थित था। अ और ब दो लुटेरों ने प के नाबालिग पुत्र को पकड़ लिया तथा उससे कहा कि वह उन लोगों को वहां ले चले जहां प कार्य कर रहा था। उनके जाने के बाद स और द दो अन्य लुटेरे घर में रह गये। स घर के मुख्य दरवाजे के समीप खड़ा हो गया जिसे उसने बन्द कर दिया। प के दो पुत्र जो दुकान में थे, संदेह होने पर घर को आये और धक्का देकर मुख्य दरवाजे को खोले जिस पर स ने उन पर गोली चला दी जिससे एक की मृत्यु हो गयी। ऐसा माना गया कि अ यद्यपि कुद समय के लिये अनुपस्थित था फिर भी हत्या का दोषी है क्योंकि वह संयुक्त आपराधिक कार्यवाही में शरीक था जिसके अधीन हत्या की गयी।
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