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SHREE BAGESHWAR ACADEMY TIKAMGARH (M.P.) Contact- 8103237478

created May 20th 2022, 03:46 by Shreebageshwar Academy


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एक देश एक चुनाव का विचार अकसर जनमानस में उमड़ता-घुमड़ता है और फिर कहीं खो जाता है। लेकिन देश और नेताओं को निरंतर चुनावी मोड में नहीं रखने का खयाल अच्‍छा है। स्‍वयं प्रधानमंत्री ने अनेक बार इसका समर्थन किया है। चूंकि किसी किसी राज्‍य में विधानसभा चुनाव हमेशा ही सिर पर रहते हैं, इसलिए नेताओं का फोकस चुनाव जीतने पर बना रहता है। इससे दीर्घकालीन महत्‍व की नीतियां जिनका कोई तात्‍कालिक लाभ नहीं है। प्राथमिकता के दायरे से बाहर रह जाती हैं। चुनाव करवाना खर्चीला काम है। उन्‍हें एक साथ करवाने से व्‍यय घटेगा। जाहिर है, कम चुनाव होने का मतलब है मतगणना के कम दिन और एक्‍सपर्ट पेनल जिसमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल है को पहले से कम काम मिल पाना, लेकिन वो जरूरी नहीं है। हमारे जैसे बड़े देश के लिए नियमित चुनाव होने से ध्‍यान भटकता है, क्‍योंकि इस कारण नेताओं को एक के बाद दूसरी रैली में शामिल होने के लिए निरंतर यात्राएं करनी होती हैं। इसके बावजूद यह हो नहीं पा रहा है। अनेक राजनीतिक दलों विशेषकर क्षेत्रीय दलों ने एक देश एक चुनाव की नीति का विरोध किया है। उन्‍हें लगता है कि राष्‍ट्रीय चुनाव के साथ राज्‍यों के चुनावों को मिला देने से अखिल भारतीय पार्टियों को लाभ मिलेगा। वे मेगा कैम्‍पेन चलाकर मीडिया कवरेज पर हावी हो जाएंगी। कइयों को यह भी लगता है कि बहुत सारे चुनाव होने से राजनेता हमेशा चाक-चौबंद रहते हैं, जो कि उनके लिए जरूरी है। इसमें क्रियान्‍वयन की भी समस्‍याएं हैं। एक चुनाव होने से निर्वाचन आयोग पर काम का दबाव बहुत बढ़ जाएगा। इसके लिए बड़े संवैधानिक संशोधनों की भी आवश्‍यकता होगी, जिसके लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत और आधे से ज्‍यादा राज्‍यों का समर्थन जरूरी है। यह आसान नहीं। फिर अविश्‍वास प्रस्‍ताव से मध्‍यावधि में सरकारें गिरने का भी प्रश्‍न है। उन राज्‍यों को फिर एक देश एक चुनाव के कैलेंडर में कैसे लाया जाएगा। इन तमाम तर्कों में दम है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इसमें कुछ किया नहीं जा सकता। शायद बीच का कोई रास्‍ता निकाला जा सकता है, जैसे एक देश और दो चुनाव, या जरूरत पड़ने पर तीन चुनाव। इस बीच के रास्‍ते से भी हमें एक देश एक चुनाव के बहुत सारे लाभ मिल सकते हैं, जबकि इससे उसकी समस्‍याओं से बचा जा सकता है। यह ऐसे कारगर साबित हो सकता है। सबसे पहले एक देश दो चुनाव की बात करते हैं। इसमें लोकसभा चुनाव अपने समय पर होंगे और उसके ढाई साल बाद सभी विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। इसे मिड-टर्म-ऑल-स्‍टेट-इलेक्‍शंस कहा जा सकता है, क्‍योंकि ये लोकसभा चुनावों की अवधि के बीच में होंगे। इससे राज्‍यों के चुनाव केंद्र के चुनाव से अगल हो जाएंगे और उससे टकराएंगे नहीं। इससे अकाउंटेबिलिटी भी निर्मित होगी, क्‍योंकि यह केंद्र सरकार के कार्यकाल के बीच में आएंगे।  

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