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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565

created Jan 25th 2022, 02:48 by lucky shrivatri


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भारत रत्‍न अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के साथ-साथ उससे इतर भी अधिक जाने-पहचाने जाते हैं। शायद इसलिए कि राजनीति से जितने उनके गहरे सरोकर थे, उतने ही साहित्‍य की संवेदना से भी थे। जो बात वे राजनीति में रहते सीधे नहीं कह पाते थे, वह उनका कवि मन कह देता था। कविताओं से उनके मन को बांट सकते हैं। उनके व्‍यक्तित्‍व का यह भी सबसे बड़ा गुण था कि वे अलग-अलग विचाराधाराओं के लोगों को भी साथ लेकर चलने में विश्‍वास करते थे। उनसे निरंतर निकटता रही। इस दौरान यह भी अनुभूत किया कि वे दिल से बहुत बड़े थे। किसी से कोई तकरार, नाराजगी हो भी जाती, तो उसे वे मन में नहीं रखते थे। अपने विरोधियों और प्रतिद्वंद्वियों के प्रति भी मैंने सदा उनके मन में आदर का भाव देखा।  
लोकतांत्रिक दृष्टि के अंतर्गत सबको साथ लेकर चलने के साथ ही अपने विचार व्‍यक्‍त करने में भी वे कभी किसी की परवाह नहीं करते थे। मुझे लगता है, सच को सच कहने का साहस हर किसी में होता नहीं है, पर वाजपेयी में यह गुण तो था ही, साथ ही अच्‍छा कार्य किसी विरोधी दल के नेता ने भी किया है, तो उसकी वह खुलकर सराहना करते थे। अतिवादिता का विरोध करने से भी कभी चूकते नहीं थे। याद है, 1971 में जब बांग्‍लादेश का निर्माण हो गया, तब विपक्ष में प्रथम पंक्ति के नेता वाजपेयी ही थे। पाकिस्‍तान की करारी हार के साथ बांग्‍लादेश के निर्माण के लिए किए प्रयासों के लिए उन्‍होंने सदन में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अभिनव चंडी दुर्गा की उपाधि तक दे दी थी। सत्ता को केवल अपने हाथों ही केन्द्रित करने की मंशा पर उन्‍होंने 80 के दशक में जनसभाओं में इंदिरा गांधी कविताएं लिखकर उन पर व्‍यंग्‍योक्ति में प्रहार भी कम नहीं किया था। उस दौर में उनकी सुनाई कविताएं आज भी याद हैं। वे ऐसा ही करते थे। मन में कुछ रखते नहीं थे। जो है कहते, नहीं तो बेबाक कविता में उसे सहज लोगों तक पहुंचा देते थे।  
उदात्त जीवन मूल्‍यों में वाजपेयी का आरम्‍भ से ही विश्‍वास था। राजनीति हो या फिर इससे इतर जीवन, वह छोटेपन से सदा दूर रहने को कहते थे। उनकी कविता की ये पंक्तियां मुझे आज भी अत्‍यन्‍त प्रिय हैं, मेरे प्रभु मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना गैरों को गले लगा सकूं। इतनी रूखाई कभी मत देना। वे कुशल वक्‍ता, हाजिर जवाब और विनोद प्रिय भी थे।  
वाजपेयी पर डॉ. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी के ओजपूर्ण व्‍यक्तित्‍व का आरम्‍भ से ही गहरा असर रहा। कश्‍मीर पर डॉ. मुखर्जी के भाषण, उनकी विचारधारा और चिंतन ने वाजपेयी को शायद आरम्‍भ से ही प्रेरित किया था। इसलिए उनके चिंतन में यह झलक बार-बार उभरती भी है। पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय के बाद जनसंघ का उन्‍हें अध्‍यक्ष पद मिला, तो उन्‍होंने सबको साथ लेते हुए संगठन के लिए भी बहुत महत्‍वपूर्ण कार्य किया। उनमें यह क्षमता भी थी कि जो उनका विरोध करते थे, उन्‍हें भी वे अपने साथ मिला लिया करते थे, मैंने स्‍वयं यह अनुभव किया। शायद इसकी बड़ी वजह यह भी थी कि वे बगैर किसी औपचारिकता के विरोधी के पास स्‍वयं जाकर सहयोग मांग लेते थे।            

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