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अनु कम्प्यूटर टाईपिंग इंस्टीट्यूट छिन्दवाड़ा SMT ट्रेवल्स के ऊपर मानसरोवर कॉम्प्लेक्स छिन्दवाड़ा मो.9424300051
created Jan 24th 2022, 08:35 by omkakodiya3
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अमर और लता दोनों भाई – बहन स्कूोल से घर आए। लता ने अपना बैग रखा और दौड़ती हुई दादाजी के पास गई और बोली-“दादाजी, पता है, आज मैडम ने अमर भैया को क्याल बोला?”
दादाजी ने चौंककर पूछा-�““दादाजी,मैडम ने अमर भैया से कहा कि वह अपने मुँह मियॉं मिट्ठू बनते हैं। दादाजी, इसका क्या मतलब है?””
इाइाजी ने समझाया-�““बेटा, इसका मतलब है- अपनी तारीफ खुद करना कछ लोग अपने बारे में बढ़- चढ़कर बातें करते हैं। चलो, तम्हेंद इस बात पर एक कहानी सुनाता हूँ। अमर को भी बुला लो।” लता अमर को बुला लाई। दोनो भाई –बहन दादाजी के सामने बैठ गए। लता बोली -�““दादाजी, अब सुनाओ कहानी।”
दादाजी ने कहानी शुरू की-“एक राजा था। उसके पास एक तोता था। वह सोने के उसकेपास एक तोता था। अच्छेी-अच्छेए और स्वातदिष्टा मेवे व फल खाता था। राजा- रानी तोते को बहुत प्याथर करते थे। कहीं तोता उड न जाए, उस डर से वे न तो कभी उसे पिंजरे से बाहर निकालते और न ही पिंजरे को महल के बाहर ले जाते। तोता हमेशा अपीन तारीफ में गाना गाता रहता-
मै राजा का तोता हूँ, मैं महलों में सोता हूँ।
मेवे-फल मैं खाता हूँ गीत खुशी के गाता हूँ।
मेरा पिंजरा सोने का, डर नहीं मुझे शिकारी का।
मैं राजा का प्यानरा हूँ, सारे जग से न्याररा हूँ।
राजा के बगीचे में पेड़ों पर ढेर सारे तोते रहते थे। वे रोजाना राजा के तोते का गाना सुनते। वे सोचते थे कि राजा का तोता कितना मूर्ख है। महल आर सोने पिंजरे की चमक-दमक के आगे वह भूल गया है। कि राजा ने उसे पअने मन को बहलाने के लिए कैद कर रखा है। उसे क्याह पता कि ताजी और खुली हवा का आनंद क्यास होता है।,खुले गगन में उड़ना कितना अच्छा। लगता है और वह कितना घमंडी है,जो अपनी तारीफ खुद करता रहता है। एक दिन कुछ तोते महल के अंदर चले गए। राजा का तोता बाहर से आए तोतों को चिढाने के लिए बार-बार अपना गाना गाने लगा।इस पर बाहर से आए तोते जोर-जोर से हँसने लगे और बोले
मन मरजी के राजा हम, खुले गगन में रहतेहम। सब कुछ खाते-पीते हम, गीत प्या र के गाते हम
सारी दुनिया महल हमारा, बाग-बगीचे जंगल सारा।
अपने मुँह मियॉं मिट्टू, तुम हो राजा के पिट्ठू
राजा के तोते को बार-बार अपने मुँह मियॉं मिट्ठू, कहते हुए सारे तोते एक-एक करके उड़ते हुए बाहर चले गए।” दादाजी ने कहानी खत्मए करते हुए कहा। कहानी सुनकर लता उछल पड़ी और बोली-�““दादाजी, अब मैं समझ गई। हमें अपेन मुँह मियॉं मिट्ठू नहीं बनना चाहिए, नहीं तो लोग हमारा जमाक उड़ाऍंगे।�”” “हॉं, बेटा। तुमने ठीक कहा। वास्तैव में हमें अच्छेा काम रकने चाहिए, जिससे देखने वाले लोग खुद हमारी तारीफ करने लगें। हमारा स्भाचाहिव,
चरित्र और गुण ऐसे होने चाहिए जो दूसरों के लिए मिसाल बन जाऍं।�”” दादाजी ने समझाते हुए कहा।
दादाजी ने चौंककर पूछा-�““दादाजी,मैडम ने अमर भैया से कहा कि वह अपने मुँह मियॉं मिट्ठू बनते हैं। दादाजी, इसका क्या मतलब है?””
इाइाजी ने समझाया-�““बेटा, इसका मतलब है- अपनी तारीफ खुद करना कछ लोग अपने बारे में बढ़- चढ़कर बातें करते हैं। चलो, तम्हेंद इस बात पर एक कहानी सुनाता हूँ। अमर को भी बुला लो।” लता अमर को बुला लाई। दोनो भाई –बहन दादाजी के सामने बैठ गए। लता बोली -�““दादाजी, अब सुनाओ कहानी।”
दादाजी ने कहानी शुरू की-“एक राजा था। उसके पास एक तोता था। वह सोने के उसकेपास एक तोता था। अच्छेी-अच्छेए और स्वातदिष्टा मेवे व फल खाता था। राजा- रानी तोते को बहुत प्याथर करते थे। कहीं तोता उड न जाए, उस डर से वे न तो कभी उसे पिंजरे से बाहर निकालते और न ही पिंजरे को महल के बाहर ले जाते। तोता हमेशा अपीन तारीफ में गाना गाता रहता-
मै राजा का तोता हूँ, मैं महलों में सोता हूँ।
मेवे-फल मैं खाता हूँ गीत खुशी के गाता हूँ।
मेरा पिंजरा सोने का, डर नहीं मुझे शिकारी का।
मैं राजा का प्यानरा हूँ, सारे जग से न्याररा हूँ।
राजा के बगीचे में पेड़ों पर ढेर सारे तोते रहते थे। वे रोजाना राजा के तोते का गाना सुनते। वे सोचते थे कि राजा का तोता कितना मूर्ख है। महल आर सोने पिंजरे की चमक-दमक के आगे वह भूल गया है। कि राजा ने उसे पअने मन को बहलाने के लिए कैद कर रखा है। उसे क्याह पता कि ताजी और खुली हवा का आनंद क्यास होता है।,खुले गगन में उड़ना कितना अच्छा। लगता है और वह कितना घमंडी है,जो अपनी तारीफ खुद करता रहता है। एक दिन कुछ तोते महल के अंदर चले गए। राजा का तोता बाहर से आए तोतों को चिढाने के लिए बार-बार अपना गाना गाने लगा।इस पर बाहर से आए तोते जोर-जोर से हँसने लगे और बोले
मन मरजी के राजा हम, खुले गगन में रहतेहम। सब कुछ खाते-पीते हम, गीत प्या र के गाते हम
सारी दुनिया महल हमारा, बाग-बगीचे जंगल सारा।
अपने मुँह मियॉं मिट्टू, तुम हो राजा के पिट्ठू
राजा के तोते को बार-बार अपने मुँह मियॉं मिट्ठू, कहते हुए सारे तोते एक-एक करके उड़ते हुए बाहर चले गए।” दादाजी ने कहानी खत्मए करते हुए कहा। कहानी सुनकर लता उछल पड़ी और बोली-�““दादाजी, अब मैं समझ गई। हमें अपेन मुँह मियॉं मिट्ठू नहीं बनना चाहिए, नहीं तो लोग हमारा जमाक उड़ाऍंगे।�”” “हॉं, बेटा। तुमने ठीक कहा। वास्तैव में हमें अच्छेा काम रकने चाहिए, जिससे देखने वाले लोग खुद हमारी तारीफ करने लगें। हमारा स्भाचाहिव,
चरित्र और गुण ऐसे होने चाहिए जो दूसरों के लिए मिसाल बन जाऍं।�”” दादाजी ने समझाते हुए कहा।
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