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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jan 24th 2022, 03:16 by rajni shrivatri
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती धूमधाम से मनाने की तैयारी चल रही है। महात्मा गांधी के शब्दों में याद करें, तो एक अनन्य देश भक्त के रूप में नेताजी हर भारत वासी के मन मानस में जीवित हैं। इस अवसर पर एक और बात को याद करना चाहूंगा। 1956 में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली जब कोलकाता आए थे, तो पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जस्टिस पी. बी. चक्रवर्ती ने उनसे लंबी बातचीत की थी। उस लंबी बातचीत में एक सवाल यह भी था कि वह कौन सा बड़ा कारण था कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को सफलतापूर्वक दबा देने के बाद भी अंग्रेजों ने भारत को आजादी देना स्वीकार कर लिया। इसके जवाब में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजादी हिंद फौज की वजह से ब्रिटिश शासन सैनिकों के बीच अपनी विश्वसनीयता खो चुका था। सैनिकों की ब्रिटिश शासन के प्रति वफादारी लगभग समाप्त हो गई थी। यही कारण था कि अंग्रेज जल्दी से जल्दी भारत छोड़ देना चाहते थे। यह कार्य एक-डेढ़ वर्ष में सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया। एटली का यह कथन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी की भूमिका और उनके प्रभाव को दर्शाने के लिए पर्याप्त है। जापान, सिंगापुर, रंगून और अंडमान में आजाद हिंद सरकार की स्थापना और कब्जे के बाद यह स्वाभाविक था कि ब्रिटिश हुकूमत को सुरक्षित और सम्मानजनक रूप से भारत से बाहर निकलने का रास्ता खोजना पड़ा। यह दूसरी बात है कि अंग्रेजों ने कूटनीतिक तौर पर अपनी वापसी में भी सफलता अर्जित की। ईस्ट इंडिया कंपनी के समय उन्होंने जिस तरह समाज को हिंदू और मुसलमान में बांट कर बंगाल से दिल्ली तक भारत पर कब्जा किया था, उन्हीं तौर तरीकों से भारत को विभाजित किया। साथ ही विभाजन से उपजी समस्याओं के मुहाने पर भारत को छोड़ दिया। इस आलोक में नेताजी के योगदान का मूल्यांकन अभी शेष है। सवाल यह भी है कि 1947 के बाद के भारत में नेताजी की भूमिका बनी रही होती, तो आज का भारत कैसा होगा।
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