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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jan 22nd 2022, 11:24 by Sai computer typing
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महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक दिन एक अरब प्रदेश का व्यापारी घोड़े बेचने आता है। वह घोड़ो का बखान कर के महाराज कृष्णदेव राय को सारे घोड़े खरीदने के लिए राजी कर लेता है तथा अपने घोड़े बेच जाता है। अब महाराज के घुडसाल में इतने अधिक घोड़े हो जाते हैं कि उन्हें रखने की जगह नहीं बचती, इसलिए महाराज के आदेश पर बहुत से घोड़ों को विजयनगर के आम-नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को तीन महीने तक देखभाल के लिए दे दिया जाता है। हर एक देखभाल करने वाले को घोड़ों के पालन खर्च और प्रशिक्षण के लिए प्रति माह एक सोने का सिक्का दिया जाता है।
विजयनगर के सभी नागरिकों की तरह तेनालीराम को भी एक घोड़ा दिया गया। तेनालीराम ने घोड़े को घर ले जाकर घर के पिछवाड़े एक छोटी सी घुडसाल बना कर बांध दिया। ओर घुडसाल की नन्हीं खिड़की से उसे हर रोज थोड़ी मात्रा में चारा खिलाने लगे। बाकी लोग भी महाराज कृष्णदेव राय की सौंपी गयी जिम्मेदारी को निभाने लगे। महाराज नाराज ना हो जाए और उन पर क्रोधित हो कोई दंड ना दे इस भय से सभी लोग अपना पेट काट-काट कर भी घोड़े को उत्तम चारा खरीद कर खिलाने लगे।
तेनालीराम के घर के पीछे छोटी सी घुडसाल देख राजगुरू कहते है कि अरे मूर्ख मानव तुम इस छोटी कुटिया को घुडसाल कहते हो? तेनालीराम बडे विवके से राजगुरू से कहते है के क्षमा करें मैं आप की तरह विद्वान नहीं हूं। कृपया घोड़े को पहले खिड़की से झांक कर देख लें। और उसके पश्चात ही घुड़साल के अंदर कदम रखें। राजगुरू जैसे ही खिड़की से अदर झांकते हैं, घोडा लपक कर उनकी दाढ़ी पकड लेता है। लोग जमा होने लगते है। काफी मशक्कत करने के बाद भी भूखा घोड़ा राजगुरू की दाढ़ी नहीं छोड़ता है। अंतत: कुटिया तोड़ कर तेज हथियार से राजगुरू की दाढ़ी काट कर उन्हें घोड़े के चंगुल से छुडाया जाता है। परेशान राजगुरू और चतुर तेनालीराम भूखे घोड़े को ले कर राजा के पहुंचते है।
घोड़े की दुबली-पतली हालत देख कर महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इसका कारण पूछते हैं। तेनालीराम कहते है कि घोड़े को प्रति दिन थोड़ा सा चारा ही देता था, जिस तरह आप की गरीब प्रजा थोड़ा भोजन कर के गुजारा करती है। और आवश्यकता से कम सुविधा मिलने के कारण घोड़ा और व्यथित और बिगडेल होता गया। ठीक वैसे ही जैसे कि आप की प्रजा परिवार की जिम्मेदारी के अतिरिक्त, घोडो को संभालने के बोझ से त्रस्त हुई।
राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना होता है। उन पर अधिक बोझ डालना नहीं। आपके दिये घोड़ेे पालने के कार्य आदेश से घोडे तो बलवान हो गए पर आप की प्रजा दुर्बल हो गयी है। महाराज कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यह बात समझ में आ जाती है, और वह तेनालीराम की प्रसंशा करते हुए उन्हें पुरस्कार देते है।
विजयनगर के सभी नागरिकों की तरह तेनालीराम को भी एक घोड़ा दिया गया। तेनालीराम ने घोड़े को घर ले जाकर घर के पिछवाड़े एक छोटी सी घुडसाल बना कर बांध दिया। ओर घुडसाल की नन्हीं खिड़की से उसे हर रोज थोड़ी मात्रा में चारा खिलाने लगे। बाकी लोग भी महाराज कृष्णदेव राय की सौंपी गयी जिम्मेदारी को निभाने लगे। महाराज नाराज ना हो जाए और उन पर क्रोधित हो कोई दंड ना दे इस भय से सभी लोग अपना पेट काट-काट कर भी घोड़े को उत्तम चारा खरीद कर खिलाने लगे।
तेनालीराम के घर के पीछे छोटी सी घुडसाल देख राजगुरू कहते है कि अरे मूर्ख मानव तुम इस छोटी कुटिया को घुडसाल कहते हो? तेनालीराम बडे विवके से राजगुरू से कहते है के क्षमा करें मैं आप की तरह विद्वान नहीं हूं। कृपया घोड़े को पहले खिड़की से झांक कर देख लें। और उसके पश्चात ही घुड़साल के अंदर कदम रखें। राजगुरू जैसे ही खिड़की से अदर झांकते हैं, घोडा लपक कर उनकी दाढ़ी पकड लेता है। लोग जमा होने लगते है। काफी मशक्कत करने के बाद भी भूखा घोड़ा राजगुरू की दाढ़ी नहीं छोड़ता है। अंतत: कुटिया तोड़ कर तेज हथियार से राजगुरू की दाढ़ी काट कर उन्हें घोड़े के चंगुल से छुडाया जाता है। परेशान राजगुरू और चतुर तेनालीराम भूखे घोड़े को ले कर राजा के पहुंचते है।
घोड़े की दुबली-पतली हालत देख कर महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इसका कारण पूछते हैं। तेनालीराम कहते है कि घोड़े को प्रति दिन थोड़ा सा चारा ही देता था, जिस तरह आप की गरीब प्रजा थोड़ा भोजन कर के गुजारा करती है। और आवश्यकता से कम सुविधा मिलने के कारण घोड़ा और व्यथित और बिगडेल होता गया। ठीक वैसे ही जैसे कि आप की प्रजा परिवार की जिम्मेदारी के अतिरिक्त, घोडो को संभालने के बोझ से त्रस्त हुई।
राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना होता है। उन पर अधिक बोझ डालना नहीं। आपके दिये घोड़ेे पालने के कार्य आदेश से घोडे तो बलवान हो गए पर आप की प्रजा दुर्बल हो गयी है। महाराज कृष्णदेव राय को तेनालीराम की यह बात समझ में आ जाती है, और वह तेनालीराम की प्रसंशा करते हुए उन्हें पुरस्कार देते है।
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