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अनु कम्प्यूटर टाईपिंग इंस्टीट्यूट छिन्दवाड़ा SMT ट्रेवल्स के ऊपर मानसरोवर कॉम्प्लेक्स छिन्दवाड़ा मो.9424300051
created Jan 22nd 2022, 10:26 by omkakodiya3
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पुराण में एक बहुत सुंदर कथा आती है । एक जंगल में एक तालाब था । उस जंगल के पशु उसी तालाब में पानी पीने आया करते थे । एक दिन एक शिकारी उस तालाब के पास आया । उसने तालाब में हाथ-मुंह धो कर पानी पिया शिकारी बहुत थका था । और कई दिन का भूखा था । उसने सोचा – ” जंगल के पशु इस तालाब के पास पानी पीने अवश्य आएंगे । यहां मुझे सरलता से शिकार मिल जाएगा ।” तालाब के पास एक बेल के पेड़ पर चढ़कर वह बैठ गया ।
एक हिरणी थोड़ी देर में तालाब में पानी पीने आयी । शिकारी ने हिरण को मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाया । हिरनी ने शिकारी को बाण चढ़ाते हुए देख लिया वह बोली – ” भाई शिकारी! मैं जानती हूं । कि अब मैं भाग कर तुम्हारे बाण से बच नहीं सकती; किंतु तुम मुझ पर दया करो । मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे मेरा रास्ता देखते होंगे । तुम मुझे थोड़ी देर की छुट्टी दे दो मैं तुम्हें वचन देती हूं । कि अपने बच्चों को दूध पिला कर और उन्हें अपनी सहेली हिरनी को सौंपकर तुम्हारे पास लौट आऊंगी ।”
शिकारी हंसा उसे यह विश्वास नहीं हुआ, कि यह हिरणी प्राण देने फिर उसके पास वापस लौटेगी । लेकिन उसने सोचा – ” जब यह इस प्रकार कहती है । तो इसे छोड़ देना चाहिए । मेरे भाग्य में होगा तो मुझे दूसरा शिकार मिल जाएगा ।” उसने हिरनी को चले जाने दिया ।
थोड़ी देर में वहां बड़े सिंग वाला सुंदर काला हिरण पानी पीने आया । शिकारी ने जब उसे मारने के लिए धनुष बाण पर चढ़ाया, तो हिरण ने देख लिया और बोला – ” भाई शिकारी! अपनी हिरणी और बच्चों से अलग हुए मुझे देर हो गई है । वह सब घबरा रहे होंगे । मैं उनके पास जाकर उनसे मिल लूं और उन्हें समझा दू, तब तुम्हारे पास अवश्य आऊंगा । इस समय दया करके तुम मुझे चले जाने दो ।”
शिकारी बहुत झ्लालया । उसे बहुत भूख लगी थी । लेकिन हिरण को उसने यह सोच कर चले जाने दिया, कि मेरे भाग्य में भूखा ही रहना होगा तो आज और भूखा रहूंगा ।
हिरणी अपने बच्चों के पास गई । उसने बच्चों को दूध पिलाया, प्यार किया । फिर अपनी सहेली हिरनी को सब बातें बता कर उसने अपने बच्चे को सोपने चाहे । इतने में वहां वह हिरण भी आ गया । उसने भी बच्चों को प्यार किया । बच्चे अपने माता-पिता से अलग होने को तैयार नहीं होते थे । अंत में उनका हट मानकर हिरण और हिरणी ने उन्हें भी साथ ले लिया ।
तालाब के पास आकर हिरण ने शिकारी से कहा -” भाई शिकारी! अब हम लोग आ गए हैं । तुम अब हमें अपने बानों से मारो और हमारे मांस से अपनी भूख मिटाओ ।”
हिरण और हिरणी की सच्चाई देखकर शिकारी को बड़ा आश्चर्य हुआ । वह पेड़ से नीचे उतरा और बोला – ” देखो ! यह हिरण पशु होकर भी अपनी बात के कितने सच्चे हैं । यह प्राण का मोह छोड़कर सत्य की रक्षा के लिए मेरे पास आए हैं । मनुष्य होकर भी मैं कितना नीच और पापी हूं, कि अपना पेट भरने और चार पैसे कमाने के लिए निरपराध पशुओं की हत्या करता हूं ।अब से मैं किसी पशु को नहीं मारूंगा ।”
शिकारी ने अपना धनुष तोड़कर फेंक दिया । उसी समय वहां स्वर्ग से एक विमान उतरा उस विमान को लाने वाले देवदूत ने कहा – ” शिकारी ! यह हिरण सत्य की रक्षा करने के कारण निष्पाप हो गए हैं । ये अब स्वर्ग को जाएंगे । तुमने भी आज इन जीवो पर दया की है । इसलिए तुम भी इनके साथ स्वर्ग चलो ।
हिरण हिरणी और उनके दोनों बच्चों का रूप देवताओं के समान हो गया । वह शिकारी भी देवता बन गया । सत्य और दया के प्रभाव से विमान में बैठ कर वे सब स्वर्ग चले गए ।
एक हिरणी थोड़ी देर में तालाब में पानी पीने आयी । शिकारी ने हिरण को मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाया । हिरनी ने शिकारी को बाण चढ़ाते हुए देख लिया वह बोली – ” भाई शिकारी! मैं जानती हूं । कि अब मैं भाग कर तुम्हारे बाण से बच नहीं सकती; किंतु तुम मुझ पर दया करो । मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे मेरा रास्ता देखते होंगे । तुम मुझे थोड़ी देर की छुट्टी दे दो मैं तुम्हें वचन देती हूं । कि अपने बच्चों को दूध पिला कर और उन्हें अपनी सहेली हिरनी को सौंपकर तुम्हारे पास लौट आऊंगी ।”
शिकारी हंसा उसे यह विश्वास नहीं हुआ, कि यह हिरणी प्राण देने फिर उसके पास वापस लौटेगी । लेकिन उसने सोचा – ” जब यह इस प्रकार कहती है । तो इसे छोड़ देना चाहिए । मेरे भाग्य में होगा तो मुझे दूसरा शिकार मिल जाएगा ।” उसने हिरनी को चले जाने दिया ।
थोड़ी देर में वहां बड़े सिंग वाला सुंदर काला हिरण पानी पीने आया । शिकारी ने जब उसे मारने के लिए धनुष बाण पर चढ़ाया, तो हिरण ने देख लिया और बोला – ” भाई शिकारी! अपनी हिरणी और बच्चों से अलग हुए मुझे देर हो गई है । वह सब घबरा रहे होंगे । मैं उनके पास जाकर उनसे मिल लूं और उन्हें समझा दू, तब तुम्हारे पास अवश्य आऊंगा । इस समय दया करके तुम मुझे चले जाने दो ।”
शिकारी बहुत झ्लालया । उसे बहुत भूख लगी थी । लेकिन हिरण को उसने यह सोच कर चले जाने दिया, कि मेरे भाग्य में भूखा ही रहना होगा तो आज और भूखा रहूंगा ।
हिरणी अपने बच्चों के पास गई । उसने बच्चों को दूध पिलाया, प्यार किया । फिर अपनी सहेली हिरनी को सब बातें बता कर उसने अपने बच्चे को सोपने चाहे । इतने में वहां वह हिरण भी आ गया । उसने भी बच्चों को प्यार किया । बच्चे अपने माता-पिता से अलग होने को तैयार नहीं होते थे । अंत में उनका हट मानकर हिरण और हिरणी ने उन्हें भी साथ ले लिया ।
तालाब के पास आकर हिरण ने शिकारी से कहा -” भाई शिकारी! अब हम लोग आ गए हैं । तुम अब हमें अपने बानों से मारो और हमारे मांस से अपनी भूख मिटाओ ।”
हिरण और हिरणी की सच्चाई देखकर शिकारी को बड़ा आश्चर्य हुआ । वह पेड़ से नीचे उतरा और बोला – ” देखो ! यह हिरण पशु होकर भी अपनी बात के कितने सच्चे हैं । यह प्राण का मोह छोड़कर सत्य की रक्षा के लिए मेरे पास आए हैं । मनुष्य होकर भी मैं कितना नीच और पापी हूं, कि अपना पेट भरने और चार पैसे कमाने के लिए निरपराध पशुओं की हत्या करता हूं ।अब से मैं किसी पशु को नहीं मारूंगा ।”
शिकारी ने अपना धनुष तोड़कर फेंक दिया । उसी समय वहां स्वर्ग से एक विमान उतरा उस विमान को लाने वाले देवदूत ने कहा – ” शिकारी ! यह हिरण सत्य की रक्षा करने के कारण निष्पाप हो गए हैं । ये अब स्वर्ग को जाएंगे । तुमने भी आज इन जीवो पर दया की है । इसलिए तुम भी इनके साथ स्वर्ग चलो ।
हिरण हिरणी और उनके दोनों बच्चों का रूप देवताओं के समान हो गया । वह शिकारी भी देवता बन गया । सत्य और दया के प्रभाव से विमान में बैठ कर वे सब स्वर्ग चले गए ।
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