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created Jan 15th 2022, 04:08 by sachin bansod


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अबकी बार तीन सौ के पार। भाजपा ने यह नारा लगाकर कोई अतिरेक तो किया नहीं था। आखिर 2017 में उसे उत्‍तर प्रदेश की 403 में से 312 सीटों पर सफलता मिली ही थी। वैसे भी चुनाव में आशावादी तो सभी होते हैं। पर हर बार हर किसी की आशा पूरी हो, ऐसा भी तो मुमकिन नहीं। भाजपा के नारे को हरियाणा और पश्चिम बंगाल में हर किसी ने उलटते देखा। हरियाणा में 47 सीट लेकर भाजपा चुनाव में उतरी थी तो नारा था-अबकी बार सत्‍तर पार। नतीजा आया तो पहले की तुलना में सात सीटें घट गई। उत्‍तर प्रदेश में तो चुनाव की तारीखों के एलान तक तमाम सर्वेक्षण भाजपा की स्‍पष्‍ट बहुमत की सरकार के दावे ही कर रहे थे। पर स्‍वामी प्रसाद मौर्य के इस्‍तीफे ने अचानक सारे सियासी पंडितों को अपने अनुमानों पर पुनर्विचार के लिए विवश कर दिया। इसके बाद अगला इस्‍तीफा दारा सिंह चौहान और उसके बाद धर्म सिंह सैनी ने दिया। कई विधायकों ने भी इस्‍तीफों की झड़ी लगा दी। हर किसी ने भाजपा से अचानक हुए मोहभंग का कारण दलितों, पिछड़ों, गरीबों और किसानों की उपेक्षा ही बताया। चुनाव के वक्‍त नेताओं का दल-बदल करना आम बात होती है। जो छोड़कर जाते हैं, पार्टी उन्‍हें कचरा बताने से भी परहेज नहीं करती। लेकिन पार्टी छोड़कर जा रहे पिछड़े और अति पिछड़े नेताओं के बारे में ऐसी नकारात्‍मक टिप्‍पणी किसी भाजपाई ने नहीं की। भाजपा अगर उत्‍तर प्रदेश में 2012 के अपने पंद्रह फीसद वोट आधार से 2017 में बढ़कर लगभग 40 फीसद के आंकड़े तक पहुंची थी तो कारण पिछड़ो का साथ आना ही था। भाजपा ने यह धारणा बना दी थी कि सपा महज यादवों और मुसलमानों के बारे में सोचती है। अब लग रहा है कि भाजपा के पिछड़े नेताओं में असंतोष है। तभी तो अखिलेश यादव उपमुख्‍यमंत्री केशव मौर्य को स्‍टूल मंत्री बताकर भाजपा में पिछड़ों की हैसियत को आईना दिखा रहे हैं।
एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ और उपमुख्‍यमंत्री दिनेश शर्मा तो कुर्सियों पर बैठे थे जबकि उपमुख्‍यमंत्री होते हुए भी केशव मौर्य दोनों के बीच एक स्‍टूल पर बैठे नजर आए थे। पिछले साल केशव मौर्य की नाराजगी की खबरें भी सामने आई थी। पर संघ और भाजपा के शिखर नेतृत्‍व ने उनकी मिन्‍नतें कर उन्‍हें बगावत से रोक दिया था। खुद योगी आदित्‍यनाथ को भी जाना पड़ा था तब केशव मौर्य के घर।
 
 

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