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BANSOD COMPUTER TYPING INSITITUTE CHHINDWARA MOB. NO. 898280577 HIGH COURT PARAGRAPH

created Jan 10th 2022, 12:30 by Sawan Ivnati


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भारत में न्‍यायपालिका, आज ब्रिटिश कानूनी प्रणाली का विस्‍तार है। सर्वोच्‍च न्‍यायालय सर्वोच्‍च निकाय है, इसके बाद 24 उच्‍च न्‍यायालय हैं, जो बदले में कई जिला न्‍यायालयों की देखरेख और शासन करते हैं। भारत के संविधान का अनुच्‍छेद 129 सर्वोच्‍च न्‍यायालय को रिकार्ड की अदालत बनाता है और ऐसी अदालत की सभी शक्तियों को उसकी अवमानना के साथ-साथ उसके अधीनस्‍थ न्‍यायालयों को दंडित करने की शक्ति प्रदान करता है। भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 141 में यह प्रावधान है कि सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा घोषित कानून सभी न्‍यायालयों पर बाध्‍यकारी है। भारत में न्‍यायपालिका कानून की व्‍याख्‍या और लागू करने और नागरिकों, राज्‍यों और विभिन्‍न अन्‍य दलों के बीच विवादों पर निर्णय लेने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश में कानून के शासन को बनाए रखना और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना अदालतों का कार्य है। जैसा कि भारत में एक लिखित संविधान है, अदालतों के पास इसके प्रावधानों की व्‍याख्‍या और लागू करने और संवैधानिक ढांचे के भीतर सभी अधिकारियों के कामकाज को सीमित करके संविधान की सर्वोच्‍चता की रक्षा करने का एक अतिरिक्‍त कार्य है। एक संघ में (अर्थात राज्‍यों का संघ), न्‍यायपालिका के पास एक और सार्थक कार्य है (कानूनी रूप से भारत के सर्वोच्‍च न्‍यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जिसे भारत के संविधान में परिकल्पित किया गया है), अर्थात घटक राज्‍यों के बीच और साथ ही संघ और राज्‍यों के बीच विवादों को तय करने के लिए। संघीय सरकार एक विधायी सरकार है, जिसकी एक विशेषता केंद्र और राज्‍यों के बीच शक्ति का आवंटन है। आमतौर पर सरकारों के बीच सत्‍ता के वितरण और उनके बीच कार्य को लेकर विवाद उत्‍पन्‍न होते हैं। इसलिए, एक मध्‍यस्‍थ को यह देखने के लिए कानूनों की जांच करने की आवश्‍यकता होती है कि क्‍या वे अधिनियमित विधायिका के आवंटित विधायी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं और यह कार्य आमतौर पर न्‍यायपालिका पर छोड़ दिया जाता है। इस संबंध में, भारत के सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अक्‍सर कानून की व्‍याख्‍या के निम्‍नलिखित सिद्धांतों को लागू किया, जैसे कि पिथ और पदार्थ का सिद्धांत, पृथक्‍करण का सिद्धांत और रंगीन कानून का सिद्धांत आदि। पिथ और पदार्थ का सिद्धांत यानी, कानून का सही उद्देश्‍य या एक क़ानून, विधायिका की क्षमता से संबंधित मामले से संबंधित है जिसने इसे अधिनियमित किया है।  
कानून के वास्‍तविक स्‍वरूप का पता लगाने के लिए किसी को भी अधिनियम को समग्र रूप से, उसके उद्देश्‍य और इसके प्रावधानों के दायरे और प्रभाव को ध्‍यान में रखना चाहिए। पृथक्‍करण का सिद्धांत किसी कानून या कानून के प्रतिकूल प्रावधानों को अन्‍य संवैधानिक प्रावधानों से अलग करता है।
 

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