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सॉंई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Dec 6th 2021, 02:34 by deepaksharma10


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उपाध्‍यक्ष महोदय, नया दवा मूल्‍य नियंत्रण आदेश जारी करते समय सरकार इस बात को बिल्‍कुल भूल गई कि उसे देश के उन लाखों उपभोक्‍ताओं का ख्‍याल करना है, लाखों लोगों का ध्‍यान रखा है, जिन्‍होंने मजबूर होने पर दवा का खर्च उठाना पड़ता है इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि यह बोझ उपभोक्‍ताओं पर, जनता पर जितना कम-से-कम पड़े  उतना अच्‍छा है। महोदय, मै आपको यह भी बताना चाहता हूं कि देश के लाखों लोग रोजाना दवा खरीदते हैं, परन्‍तु खेद की बात यह है कि हमारी सरकार ने, उद्योग मंत्रालय ने देश के नागरिकों का नहीं बल्कि देश में दवा बनाने वाले उद्ययोगपतियों का ज्‍यादा ख्‍याल किया है। यह देखकर बड़ा आर्श्‍चय होता है कि उसने अपने नए आदेश के अंतर्गत प्रथम श्रेणी में आने वाली दवाओं का मुनाफा 35 से बढ़कर 75  प्रतिशत तक कर दिया है। महोदय, हमें इस  बात का ध्‍यान रखना चाहिए कि दवा की किमतें सरकार अपने नियंत्रण में रखे कि दवा उद्ययोगपतियों की मर्जी पर। दवा आज के समय में कितनी जरूरी है क्‍योंकि बिना उसके हमारे देश के लोगों का जीवन बच नहीं सकेगा।  
किसी तरह दूसरी सूची में आने वाली सभी दवाइयों पर मुनाफें का प्रतिशत 55 से बढ़कर 100 प्रतिशत कर दिया गय है। इसका मतलब यह है कि देश के हर उपभोक्‍ता पर कम-से-कम 40 से लेकर 45 प्रतिशत तक का औसत भार पड़ने वाला है और इसका शिकार स्‍वंय सरकार भी होगी क्‍योंकि उसे अपने राष्‍ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत करोड़ों रूपयों की दवाएं उन्‍हीं दवा कम्‍पनियों से खरीदनी पडेगी।  
महोदय, सरका का नुकसान तो इसलिए और भी ज्‍यादा है क्‍योंकि नया आदेश जारी करते समय उद्योग मंत्रालय ने स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के इस प्रस्‍ताव को नहीं माना की पहली सूची में 13 बड़े रोगों की दवाएं रखी जाए जो समान्‍यत: पूरे देश को प्रभावित करेगी। मंत्रालय ने केवल 6 रोगों की दवाएं प्रथम श्रेणी में रखी है जिनके मुनाफे वाली दूसरी सूची में है, इससे बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट हो रहा है कि देश की सरकार के सामने जनता यहां इन सबसे से और भी अधिक स्‍पष्‍ट हो जाता है कि दवा नीति बनाने का काम स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय की जिम्‍मेदारी नहीं है बल्कि उद्योग मंत्रालय की जिम्‍मेदारी है और इस मंत्रालय ने उपभोक्‍ताओं की जगह दवा उत्‍पादकों के हित का ख्‍याल रखा है। यही कारण है कि दवाओं के दाम लगातार बढ़ते चले ही जा रहे हैं और रूकने वाले नहीं है।  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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