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created Nov 30th 2021, 04:11 by rj264826


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भारतीय परिषद अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने प्रान्‍तों के गवर्नर तथा वायसराय के अधिकारों में वृद्धि कर दी तथा साथ ही विधान परिषद का विस्‍तार किया गया। इस अधिनियम के मुख्‍य प्रावधान बनाये गये। इस अधिनियम के द्वारा पहली बार कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीयों को शामिल करने की व्‍यवस्‍था का प्रारम्‍भ हुआ। वायसराय कुछ भारतीयों को विस्‍तारित में गैर सरकारी सदस्‍यों के रूप में नामित कर सकता था। इस प्रकार नामित किए गए सदस्‍यों के व‍िधायी कार्य से सम्‍बद्ध कार्य करने का अधिकार वायसराय को दे दिया गया।  
गर्वनर जनरल की विधायी शक्तियों का विकेन्‍द्रीकरण करके उन्‍हें बम्‍बई तथा मद्रास की सरकारों में निहित कर दिया गया। इस प्रकार से 1773 ई. के रेग्‍यूलेटिंग एक्‍ट से शुरू केन्‍द्रीकरण की प्रवृत्ति को इस अधिनियम द्वारा बदल दिया गया। विकेद्रीकरण की इसी प्रवृत्ति के कारण वर्ष 1937 में प्रान्‍तों द्वारा पूर्ण आन्‍तरिक स्‍वायत्‍तता प्राप्‍त की गई। गर्वनर जनरल की कार्यकारी परिषद का विस्‍तार किया गया और उसमें पॉंचवा सदस्‍य सम्मिलीत किया गया। उसका न्‍यायविद् होना आवश्‍यक था तथा इसके साथ ही विधि निर्माण हेतु गवर्नर जनरल की परषिद् में 6 सें 12 सदस्‍यों की वृद्धि की गई, जिनका कार्यकाल दो वर्ष का निर्धारित किया गया।  
वायसराय को निषेधाधिकार (वीटो) की शक्ति प्राप्‍त थी तथा आपात स्थिति में परषिद् की संस्‍तुति के बिना अध्‍यादेश जारी करने की शक्ति उसे दे दी गई। ऐसे अध्‍यादेश की अवधि छ: माह तक होती थी। बहुत से ऐसे विषय निर्धारित किए गए, जिन्‍हें प्रस्‍तावित किए गए, जिन्‍हें प्रस्‍तावित करने के लिए गवर्नर जनरल की पूर्व अनुमति आवश्‍यक होती थी।

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