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created Nov 25th 2021, 05:57 by lovelesh shrivatri
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जम्मू संभाग के पुंछ जिले में पिछले कुछ दिनों से सैन्य कार्रवाई चल रही है। सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बलो ने जिले के जंगल को चारों तरफ से घेर रखा है और तलाशी अभियान चल रहा हैं। इसमें ड्रोन व हेलीकॉप्टर की भी मदद ली जा रही है। इसके पहले 2009 में पुंछ के पाटीदार इलाके में एक ऑपरेशन नौ दिन तक चला था। थल सेना प्रमुख के अभियान तेज करने के निर्देश यह समझने के लिए पर्याप्त है कि आतंकियों को किसी भी सुरत में बख्शा नहीं जाएगा। कहा जा रहा है कि वे प्राकृतिक गुफाओं और गुज्जरों की ढोकी के बीच छिपे हो सकते है। खुफियां एजेंसियों के मुताबिक कोई न कोई लोकल गाइड उनके साथ है। जम्मू क्षेत्र के सीमावर्ती पूंछ और राजौरी जिलों में 90 के दशक से ही सीमा पार से आए आतंकी इसी तरकीब से बचते रहे हैं। आतंकी इस इलाके के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र और घने जंगलों में आसानी से पनाह लेते है और फिर जंगलों से होते हुए ही दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले तक पहुंच जाते हैं। डेरा की गली का जंगल मेंढर से शुरू होता हुआ भिंबर गली तक आता है। आतंकियों की घुसपैठ का रूट बालाकोट से शुरू होता है और पीरपंजाल की पहाडि़यों के साथ कश्मीर के शोपियां तक फैला है। सर्दियों में इस इलाके में भारी बर्फबारी होती है और इसी दौरान आतंकी सीमा पार से भारत की जमीन पर घुसपैठ कर लेते हैं। जम्मू क्षेत्र में पाकिस्तान से दाखिल होने का दूसरा रास्ता कठुआ और सांबा जिलों में मौजूद 200 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा से होकर आता है। इस रास्ते से भारत में घुसपैठ करने वाले आंतकी उधमपुर, भद्रवाह, रामबन, किश्तवाड और डोडा के जंगलों में पहुंचते हैं। वहां से फिर ये दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले की तरफ चले जाते हैं। रामबन, किश्वाड पहले डोडा जिले के ही हिस्से थे। 90 के दशक में डोडा के किश्तवाड़ इलाके का नवां पाची आतंकियों का गढ़ था। यहां आतंकियों का होल्डिंग एरिया बना हुआ था और यहीं से वे किश्तबाड़ से जंगलों से अनंतनाग पहुंचते थे। साल 2013 आते-आते पुंछ, राजैरी, डोडा, रामबन, किश्तवाड़, भद्रवाह आदि इलाके आतंक से मुक्त हो गए। पिछले साल जब दिसंबर में जम्मू पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने पुंछ के बसूनो गांव से मुश्ताक इकबाल और मुर्तजा इकबाल नामक दो भाइयों को ग्रेनेड के साथ गिरफ्तार किया, तो लगा कि इस इलाके में एक बार फिर से आतंकवाद को पुनर्जीवित करने के प्रयास हो रहे हैं। इसके बाद इस साल सितंबर में सीमा पार से घुपैठ की खबर आई। ये आतंकी सूरनकोट, थानामंडी और भट्टाधूरियां के बीच के लगभग 16 किलोमीटर के जंगल में सक्रिय थे। सभी जानते हैं कि धारा-370 हटने के और राज्य के दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजन के बाद जम्मू-कश्मीर में जिस तरह के सकारात्मक बदलाव दिखने लगे हैं, उससे आतंकियों के आकाओं को बेचैनी होने लगी है। हाल के दिनों में कश्मीर में हुई आम नागरिकों की हत्याएं इसी ओर इशारा करती हैं। इसी बीच जम्मू क्षेत्र में भी आतंक को पुनर्जीवित करने की साजिश शुरू हो गई है।
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