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created Nov 24th 2021, 07:57 by shiksha computer
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बात वर्षो पुरानी है। बेटी की मनचाहा दहेज देने के बावजूद, पीडि़त पिता की करूण कहानी है। हालांकि,इतने वर्षो बाद भी दहेज के भूखे भेडि़यों में कोई खास कमी नहीं आई है। मैं वर्षो पूर्व एक सजातीय बुजुर्ग के साथ मुबई गया। मेरे पिता जी ने उनके साथ जाने को कहा था। वहां के एक अपरिचित कारोबारी और समाज सेवक के पास पहूंचे। बुजुर्ग ने उनसे अपना दुखड़ा सुनाते हुए बताया, बिचौलिये के माध्यम से बेटी का विवाह अपने शहर से 40 किमी की दूरी पर स्थित शहर में किया। अपने सामर्थ्य अनुसार दहेज भी दिया था, लेकिन बिचौलिये ने हमारे बारे में उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर बताया। उनकी अपेक्षा से दहेज कम मिला, इसलिए शादी के 7-8 महीने बाद भी हमारी बेटी को मायके नहीं भेज रहे हैं। हमारी बेटी हमेशा चिट्ठी लिखती है कि ससुराल में खुश है। उसे कोई कुछ नहीं कहता है,लेकिन हम पति-पत्नी को बेटी की चिंता खाए जा रही है। बहुत सारे लोगों से कहलवा चुके हैं, मगर वे अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। मैं बड़ी आशा लेकर आपके पास आया हूं। आप मेरी मदद करेंगे तो मैं आजीवन आपका ऋणी रहूँगा ' हाथ जोड़कर फफकते हुए बुजुर्ग रोने लगे। कारोबारी ने बुजुर्ग को सांत्वना दी। समधी के बारे में कुछ बातें पूछीं। फिर लैंडलाइन से कई जगह फोन किया। थोड़ी देर बाद बुजुर्ग को दिलासा देते हुए उन्होंने कहा,'आप निश्चिंत हेाकर घर जाइए। भगवान ने चाहा तो आपकी बेटी बहुत जल्द मायके आएगी।' बुजुर्ग ने हाथ जोड़कर उन्हें बार-बार धन्यवाद कहा। जाने की आज्ञा मांगी तो उन्होंने हमें आग्रह कर भेजने करवाया। बुजुर्ग के मन का बोझ हल्का हो गया। आश्वस्त होकर हम दोनों अपने शहर लौट आए। कुछ ही दिनों बाद उनकी बेटी पति के साथ,बिना पूर्व सूचना के मायके पहूंची। परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। वो बुजुर्ग मुंबई के कारोबारी की निस्वार्थ मदद के लिए उन्हें सच्चे मन से दुआंए देने लगे। उसका आभार मानते हुए एक लंबी-चौड़ी लिखवाकर, उन्हें भेजी। जब तक वे बुजुर्ग जीवित रहे,उस समाज सेवक कारोबारी का गुणगान गाते रहे।
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