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created Nov 24th 2021, 02:40 by Jyotishrivatri


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लोकतंत्र केवल सहमति का तंत्र नहीं है। हर बात में सबको सहमत होना ही होगा, यह राजशाही, सामंतशाही या तानाशाही की जीवनी शक्ति तो हो सकती है, पर लोकतंत्र में असहमति की मौजूदगी ही उसको जीवंत बनाती है। एक अकेला व्‍यक्ति भी असहमत हो, तो ऐसी अकेली और निर्भय आवाज को अल्‍पमत मान अनसुना करने, नकारने या कुचल देने को भले ही कोई तत्‍वत: तानाशाही माने, महज मनमानी या बहुमत का विशेष अधिकार माने, पर ऐसा व्‍यवहार किसी भी रूप में जीवन लोकतांत्रिक तो निश्चित ही नहीं माना जा सकता है। यह बात ध्‍यान रखनी होगी कि लोकतंत्र नाम से नहीं, निर्भय अकेली आवाज को निरंतर उठाने देने और उठाते रहने से ही परिपूर्ण और प्रभावी बनता है।  
लोकतंत्र पक्ष और विपक्ष की विवेकजन्‍य समझदारी का तंत्र है। लोकतंत्र में असहमति को, हर किसी को अपना विचार या मत अभिव्‍यक्‍त करने का मूलभूत अधिकार निहित होता है। किसी को भी वैचारिक अभिव्‍यक्ति से रोका नहीं जा सकता। लोकतंत्र में निर्णय भले ही बहुमत से होते हों, पर बहुमत से असहमत होने का मूलभूत अधिकार, तो असहमतों को हर हाल में उपलब्‍ध ही है। लोकतंत्र में बहुमत और अल्‍पमत दोनों को येअधिकार है कि वे निर्भय होकर अपनी-अपनी बात खुलकर रखें एक-दूसरे को सुनें-समझें, तब निर्णय करें।  
भारत में लोकतंत्र को आए सात दशक से ज्‍यादा का वक्‍त गुजर गया। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। फिर भी भारत के लोगों और भारत के राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक और प्रशासनिक तंत्र में असहमतों और असहमतियों कों हाथों-हाथ नहीं लिया जाता। सारे के सारे सहमत विचार असहमत विचार पर तत्‍काल हमलावर हो जाते हैं। सहमतों को लगता है कि असहमत उनके काम में अड़ंगा हैं। यदि असहमतियों का कोई मतलब ही नहीं होता, तो दुनिया में लोकतंत्र के विचार का जन्‍म ही नहीं होता। इन नजरिए से सोचा जाए, तो असहमतियों और सहमतियों के सह-अस्तित्‍व से ही वास्‍तविक लोकतंत्र सही मायने में चलाया और निखारा जा सकता है। नीचे से ऊपर तक हमारे यहां यही समझ है कि चुनाव होना और कैसे भी चुनाव जीतना, यही लोकतंत्र का मूल है। हम बात तो लोकतंत्र की करते हैं, परन्‍तु हम सबका आचरण प्राय: सामंती प्रवृत्ति का पोषक ही बना हुआ है। आज करीब सात दशक के बाद भी हम लोकतांत्रिक मूल्‍यों और मानस को भारत के लोकजीवन में निखार नहीं पाए। इसी से नागरिकों और व्‍यवस्‍था दोनों में लोकतंत्र के प्रति समर्पण भाव और जागरूकता नहीं दिखाई देती है। जागरूकता के बिना और जी हुजूरी से जीवन ही चलना संभव नहीं है। फिर भी हम मानते और गर्व करते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हमारे लोकतंत्र में कई सारी कमजोरियां महसूस हो रही हैं या स्‍पष्‍ट दिखाई देती है।  
चुनी हुई सरकार को लोकतंत्र को हर संभव सशक्‍त और प्रभावी बनाने की कोशिश करनी चाहिए। आम लोगों की भागीदारी और ताकत महसूस होनी चाहिए। लोगों का, लोगों के द्वारा और लोगों के लिए ही लोकतंत्र का जन्‍म हुआ है। लोकतंत्र का यह मूल स्‍वरूप बनाए रखना जनता, सरकार और चुने हुए नेतृत्‍व या बिना चुने हुए प्रभावी लोगों का कर्तव्‍य और सामूहिक उत्तरदायित्‍व भी है।  

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