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सॉंई कम्प्युटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Nov 22nd 2021, 04:21 by lovelesh shrivatri
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आजादी, एक रूहानी अहसास को किसी ने यह शब्द ओढ़ा दिया था। इसके असली मायने उन्हें मालूम हैं, जो गुलाम हिंदुस्तान में यूं जीते रहे थे कि आजाद भारत में सांस लेनी है। कुछ नितांत साधारण लोगों के हृदय को हिंदुस्तान के पहले लगने वाला यह विशेषण इस कदर चुभता था कि उनमें से कोई सिंह बन कर गरजा, तो कोई आत्मा की शक्ति से महात्मा हो गया और आक्रांताओं की चूलें हिलाते हुए शेष संसार को एक नूतन दिशा ही दे गया।
यह भारत नाम की महान संस्कृति ही है, जो बारंबार अपहरण के बाद भी जानकी ही बनी रही, विद्रूपताएं इसे छू तक न सकीं, भले ही बाहरी खुशनुमा रंग सिमटते रहे। भारतीय हर 15 अगस्त को रूह से खुश होते हैं
देशवासी एक अजब-सी पुलक में लिपट कर अंतरतम से झूमते हैं। यह तस्दीक है कि उन्नीस सौ सैंतालीस की आजादी पूर्ण, शाश्वत और महानतम घटना थी, जो हमारा गर्व है।
इस शुभ्र खुशबु सरीखी पुलक का घोर अपमान हाल ही में गूंजा। सिंहों की समवेत गर्जना का, महात्मा के प्रयासों की दिव्यता का घनघोर अपमान हाल ही में गूंजा। अभिनेत्री कंगना राणावत ने बयान दिया कि वह आजादी तो भीख में मिली थी। यह साधारण टिप्पणी नहीं है और न ही कंगना कोई साधारण शख्सियत। क्या जो राष्ट्र उन्हें चार बार श्रेष्ठतम अभिनय व पद्म पुरस्कार से नवाजता है, वह भीख की आजादी के लिए जश्न मनाता है? यह उस आजादी की ही नेमत है कि ऐसी शख्सियत को सहा जा रहा है। गौर करें, तो इस बयान को सह लेने, नजरअंदाज किए जाने के मायने यह भी हो सकते हैं कि हमारे में अपने राष्ट्र की मान-अपमान को लेकर लेश-मात्र भी गांभीर्य नहीं है। मायने यह भी हो सकते हैं कि कोई हमारी महीन भावनाओं से राह चलते, हंसी-हंसी में, बिना घड़ी देखे कभी भी खेल सकता है। देश या सत्ता का सूखा रिएक्शन अच्छा संकेत नहीं है। कंगना का बयान भारत की हार के बाद की आतिशबाजी की खुली ललकार का ही एक सिलसिला है। देश के गौरव में दाग लगाती बातों की बारहखड़ी के 'अ' से 'आ' तक भी हमें नहीं पहुंचना चाहिए या पहुंचने देना चाहिए, जबकि अब तो हम 'क्ष, त्र, 'ज्ञ' तक भी खीसें निपोरते पाए जा रहे हैं।
यह भारत नाम की महान संस्कृति ही है, जो बारंबार अपहरण के बाद भी जानकी ही बनी रही, विद्रूपताएं इसे छू तक न सकीं, भले ही बाहरी खुशनुमा रंग सिमटते रहे। भारतीय हर 15 अगस्त को रूह से खुश होते हैं
देशवासी एक अजब-सी पुलक में लिपट कर अंतरतम से झूमते हैं। यह तस्दीक है कि उन्नीस सौ सैंतालीस की आजादी पूर्ण, शाश्वत और महानतम घटना थी, जो हमारा गर्व है।
इस शुभ्र खुशबु सरीखी पुलक का घोर अपमान हाल ही में गूंजा। सिंहों की समवेत गर्जना का, महात्मा के प्रयासों की दिव्यता का घनघोर अपमान हाल ही में गूंजा। अभिनेत्री कंगना राणावत ने बयान दिया कि वह आजादी तो भीख में मिली थी। यह साधारण टिप्पणी नहीं है और न ही कंगना कोई साधारण शख्सियत। क्या जो राष्ट्र उन्हें चार बार श्रेष्ठतम अभिनय व पद्म पुरस्कार से नवाजता है, वह भीख की आजादी के लिए जश्न मनाता है? यह उस आजादी की ही नेमत है कि ऐसी शख्सियत को सहा जा रहा है। गौर करें, तो इस बयान को सह लेने, नजरअंदाज किए जाने के मायने यह भी हो सकते हैं कि हमारे में अपने राष्ट्र की मान-अपमान को लेकर लेश-मात्र भी गांभीर्य नहीं है। मायने यह भी हो सकते हैं कि कोई हमारी महीन भावनाओं से राह चलते, हंसी-हंसी में, बिना घड़ी देखे कभी भी खेल सकता है। देश या सत्ता का सूखा रिएक्शन अच्छा संकेत नहीं है। कंगना का बयान भारत की हार के बाद की आतिशबाजी की खुली ललकार का ही एक सिलसिला है। देश के गौरव में दाग लगाती बातों की बारहखड़ी के 'अ' से 'आ' तक भी हमें नहीं पहुंचना चाहिए या पहुंचने देना चाहिए, जबकि अब तो हम 'क्ष, त्र, 'ज्ञ' तक भी खीसें निपोरते पाए जा रहे हैं।
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