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सॉंई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

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जीवन यादों का एक ऐसा समूह होता हैं जिसमें अच्‍छे-बुरे, हित-अहित वाले, सुखी-दुखी करने वाले, जहरीले और अमृतधारी, यानी हर तरह के पल समाहित होते हैं। यह फूलों का वैसा गुलदस्‍ता नहीं होता जिसमें हम अपनी मर्जी से सुंदर और सुगंधित फूलों को सजाकर अपने किसी प्रिय को भेंट करते हैं, और उस पल के लिए, उसकी यादों में हमेशा बने रह जाना चाहते हैं। इसीलिए जब इतिहास लेखन की बात आती है तो अत्‍यधिक सावधानी जरूरी हैं। इतिहास लेखन काफी जिम्‍मेदारी से किया जाने वाला काम हैं, जिसमें जरा-सी चूक आने वाली पीढियों को सिर्फ भटका सकती है, बल्कि आत्‍म-प्रवंचक भी बना सकती है। और प्रवंचना का शिकार मनुष्‍य तो अपने किसी काम का होता है और ही देश या दुनिया के लिए। इतिहास गवाह है कि प्रवंचना का शिकार व्‍यक्ति, राजा हो या रंक, अपना विनाश कर डालता हैं। इतिहासकारों को हमेशा याद रखना चाहिए कि इतिहास लेखन की त्रुटियों का भी अपना इतिहास होता हैं। कोई इससे बच नहीं सकता। इसीलिए समय-समय पर इतिहासकारों के ऊपर अंगुली उठती रही है। नेशनल बुक ट्रस्‍ट के चेरमैन गोविंद प्रसाद शर्मा ने यह कहकर फिर से इस बहस को छेड़ दिया है कि नए तथ्‍यों के आधार पर इतिहास का पुनर्लेखन किया जाना चाहिए। उनकी इस बात में दम हैं। यदि नए तथ्‍य सामने आए हैं, जिन्‍हें पूर्व के इतिहासकारों ने नजरअंदाज किया हो, तो निश्चित रूप से उसे दुरूस्‍त किया जाना चाहिए। लेकिन, उन्‍होने यह भी कहा है कि बच्‍चों के पाठ्यक्रम में जो इतिहास पढ़ाया जा रहा है, उसमें अभी ज्‍यादातर पराजय का उल्‍लेख है, जबकि उन्‍हें युद्ध में जुझारूपन की भावना (फाइटिंग स्पिरिट) के बारे में बताया जाना चाहिए। उनकी दूसरी बात संशय पैदा करती है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि मन-माफिक इतिहास लिखने बालों ने पहले ही हमारा काफी नुकसान कर दिया हैं। दरअसल, इतिहास पुनर्लेखन से ज्‍यादा जरूरत इस बात की है कि उन तथ्‍यों घटनाओं को इतिहास में जगह मिले जिन्‍हें पूर्व के इतिहासकारों ने विभिन्‍न वजहों से नजरअंदाज किया हो। नए तथ्‍यों को शामिल करते हुए इतिहास को सुधारा जाना एक बात है और किसी नए तथ्‍य को शामिल करते हुए पुराने तथ्‍यों को नजरअंदाज करना दूसरी बात। इसमें दोराय नहीं कि हमारे इतिहासकार मुख्‍य रूप से युद्धों के इतिहास पर ज्‍यादा केंद्रित रहे हैं। उनके लिए जय या पराजय महत्‍वपूर्ण रही हैं। तब भी उन्‍होंने पृ‍थ्‍वीराज चौहान या महाराणा प्रताप या झांसी की रानी जैसे योद्धाओं के संघर्ष और जुझारूपन की भावना से हमें वाकिफ कराया ही हैं, जिनका उल्लेख गोविंद प्रसाद शर्मा ने भी किया हैं।   

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