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created Sep 16th 2021, 03:30 by manish jain
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उक्त मामले में बाम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य में कुटुम्ब न्यायालय न्यायाधीशों के 7 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करते हुए विज्ञापन जारी किया था। इस विज्ञापन में नियुक्ति के लिए विचारण किए जाने योग्य योग्यता और साथ ही कतिपय सेवा शर्तों के बावत अनेक शर्तें समाविष्ट थीं। चयनित अभ्यायर्थियों को कुटुम्ब न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त किया गया था और बाद में उनमें से कुछ को कुटुम्ब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त किया गया था। उक्त मामले के याचियों ने दलील दी थी कि कुटुम्ब न्या्यालय के न्यायाधीश ''न्याययिक पद'' धारित करते हैं और वे न्या यिक कार्यों का निर्वहन करते हैं और इस प्रकार बॉम्बे उच्च न्यायालय की न्यायपीठ में उन्नयन के लिए विचारित किए जाने के हकदार हैं। इस दलील को स्पष्ट करते हुए यह दलील दी गई कि कुटुम्ब न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति कानूनी नियमों के अंतर्गत होती है, कुटुम्ब न्यायालय के न्यायाधीश के कर्तव्य और दायित्व सिटी सिविल न्याायालय के न्यायाधीशों के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के समान होते हैं ओर संक्षेप में वे किसी अन्य न्यायालय के न्यायाधीशों की भांति समान कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं और कुटुम्ब न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि कुटुम्ब न्यायालय सही अर्थ में अधिकरण होता है, जो राज्य द्वारा उसके संविधान के अंतर्गत संपोषित सिविल अधिकारिता के न्यायालयों का राज्यो की न्यायिक शक्ति के प्रयोजनार्थ सामान्य पदानुक्रम का भाग होता है। यह न्याायालय राज्य के सभी न्यायिक कार्यों का निर्वहन करते हैं सिवाय उनके जिनको विधि द्वारा उनकी अधिकारिता से पृथक कर दिया गया है। हमारे हाईकोर्ट व्हाटसऐप ग्रुप से जुड़ने के लिए अपना नाम व सिटी का नाम इस नम्बर पर व्हाटसऐप करें- 8109957050
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