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सॉंई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Sep 15th 2021, 06:32 by rajni shrivatri


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महिला सशक्‍तीकरण के दौर में महिलाओं में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। वे स्‍वावलंबी हो रही है और इससे पारिवारिक आर्थिक ढांचे में सुधार भी हो रहा है। मगर इसका खमियाजा महिलाओं की सेहत को भुगतना पड़ रहा है। दिल्‍ली, मुंबई समेत देश के सात बड़े शहरों में किए गए एक सर्वे में चौकाने वाले तथ्‍य सामने आए है। इंडियन विमिन हेल्‍थ की वर्ष 2021 की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में कामकाजी महिलाओं की सेहत ठीक नहीं है। करीब 67 प्रतिशत महिलाएं अपनी सेहत से जुड़ी समस्‍याओं पर चर्चा करने से भी हिचकती है। नि:संदेह वे घुट-घुटकर अपनी व्‍याधियों और रोगो से मुकाबला कर रही होंगी। तथ्‍य यह भी है कि 22 से 55 वर्ष की उम्र की 59 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं अपनी सेहत संबंधी परेशानी के कारण नौकरी छोड़ देती है।  
प्रश्‍न यह है कि महिलाएं स्‍वस्‍थ नहीं होगी तो वे अपनी नौकरी-पेशे, परिवार और बच्‍चों की फिक्र कैसे करेंगी। महिलाओं के इस जज्‍बे को सभी सराहते है कि वे देश, समाज और परिवार के हर दायित्‍व को बखूबी निभा रही है। मगर कामकाजी, महिलाओं के बच्‍चों पर क्‍या बीत रही है, इस बारे भी चर्चा की जानी चाहिए। पुरूषवादी समाज में संवेदनशीलता और महिलाओं की सेहत को लेकर जिम्‍मेदार के बोध की घोर कमी है। यह बात सर्वे में भी साफ हुई है। महिलाओं ने बताया है कि जब उनकी सेहत की बात आती है तो 80 प्रतिशत फीसदी पुरूष सहयोगी संवेदनहीन बर्ताव करते है।  
इस तरह के सर्वे पहले भी आते रहे हैं, मगर समस्‍या का समाधान सामने नहीं आया है। आधी आबादी की सेहत की चिंता करते हुए यह  सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कामकाज के दौरान महिलाओं के प्रति बर्ताव में सुधार हो। उनके अधिकारों को अधिक संरक्षरण दिया जाना चाहिए। यह भी तय किया जाना चाहिए कि श्रम साधना करके जो महिलाएं राष्‍ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभा रही है, उन्‍हें परिवार बच्‍चों के लिए अधिक वक्‍त दिया जाना चाहिए।  
इससे भी अधिक अहम चर्चा का विषय उन महिलाओं की सेहत की चिंता करना है जो गृहिणियां हैं। कार्यालयों सेवा स्‍थल पर जो हालात हैं, उससे बदतर स्थितियां घरों में है। कार्यालय में पुरूष सहयोगी जैसा बर्ताव करते हैं, वैसे ही व्‍यवहार का सामना महिलाओं को अपने घरो में भी करना पड़ता है। कई तरह के कानून-कायदे बन चुके है, मगर हालात सिर्फ इनके दम पर नहीं सुधरेंगे। सोच बदलने से ही महिलाओं की सेहत से जुड़े सवालों का जवाब मिल सकेगा, उनका समाधान हो सकेगा।    

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