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created Sep 14th 2021, 09:09 by Jyotishrivatri
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सड़क की बदहाली फिर प्रदेश की बड़ी समस्या बन गई है। सभी शहर इससे जूझ रहे हैं। जबलपुर में पक्ष-विपक्ष दोनों के जनप्रिनिधियों ने सड़कों की खराब हालत सुधारने पर प्रभारी मंत्री को घेरा तो वे सिर्फ आश्वासन दे पाए। ग्वालियर में जर्जर हाल सड़कों का मामला सामने आने पर प्रभारी मंत्री ने दस दिन में सड़कों के पैंच रिपोयरिंग का काम पूरा करने का आदेश दे डाला। उस पर बारिश का रोना जा रहा है। भोपाल में जर्जर सड़कों पर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को फटकार लगा दी। नौबत यह आई कि इसके जिम्मेदार राजधानी परियोजना प्रशसन को तत्काल प्रभाव से खत्म करने का आदेश दे दिया। मुख्यमंत्री ने राजधानी के अधिकारियों से कुछ प्रश्न किए, जो हर शहर और वहां के अधिकारियों से भी पूछे जाने चाहिए। यह प्रश्न उस टालमटोल भरे रवैए पर उठते हैं जो अधिकारी सड़कों की बदहाली के पीछे अपनाते रहे है। इनमें से एक है बारिश में सड़कें सुधारी नहीं जा सकती। मुख्यमंत्री ने जवाब मांगा कि बारिश से पहले सड़कों को क्यों नहीं सुधारा गया, किसकी प्रतीक्षा की जा रही थी, ऐसी स्थिति बनी ही क्यों? प्रश्नों के सही उत्तर मिलें तो जिम्मेदार विभागों ओर उनके अधिकारियों का असली चेहरा सामने आ जाएगा। सड़कों की खराबी का एक और बड़ा कारण सीवेज और वाटर लाइन का अस्तव्यस्त काम भी है। अमृत योजना में पाइपलाइन बिछाने के लिए सड़कों को खोदा गया, लेकिन उनको दोबारा बनाने में लापरवाही की गई। इसे न सिर्फ लापरवाही बल्कि भ्रष्टाचार भी कहना चाहिए। अमृत योजना की निविदा शर्तो में काम के दौरान सड़कों को उखाड़ने पर उन्हें दोबारा उसी तरह बनाकर देना है। इसके लिए योजना की स्वीकृत राशि का बड़ा बजट रखा गया था। इसको मिलाकर ही निविदा स्वीकार की गई, पर शायद ही कहीं किसी सड़क को पूरा बनाया गया होगा। उखाड़ी गई सड़क के केवल उसी हिस्से को मलबा भरकर डामरीकरण कर दिया। इससे सड़क की शक्ल ही बदल गई।
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