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सॉंई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

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पर्युषण पर्व जैन समाज का सबसे महत्‍वपूर्ण पर्व हैं। इस पर्व की मुख्‍य बातें भगवान महावीर के मूल पांच सिद्धांतों पर आधारित हैं। अहिंसा यानी किसी को कष्‍ट नहीं पहुंचाना, सत्‍य, अस्‍तेय यानी चोरी करना, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यानी जरूरत से ज्‍यादा धन एकत्रित करना। जैन धर्म के श्‍वेतांबर और दिगंबर दोनों ही समुदाय यह पर्व श्रद्धा से मनाते हैं। श्‍वेतांबर समाज आठ दिन तक पर्युषण पर्व मनाता है और दिगंबर समाज दस दिन तक दसलक्षण के रूप में पर्युषण पर्व मनाता है। श्‍वेतांबर समाज पर्युषण के समापन पर क्षमावाणी पर्व मनाता है। दसलक्षण पर्व प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ा हुआ हैं। मानसून के दौरान मनाया जाने वाला यह पर्व पूरे समाज की प्रकृति से जुड़ने की सीख भी देता है। इसे धर्म से इसलिए जोड़ा गया हैं, क्‍योंकि जो भी सकारात्‍मक कार्य होता हे, वह आखिर में धर्म ही तो हैं। पर्यावरण असंतुलन पूरी दुनिया में आज सबसे ज्‍यादा चिंता का विषय है। प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन तब बिगड़ता है, जब इंसान में क्रोध, अहंकार, माया, लोभ, असत्‍य, असंयम, स्‍वच्‍छन्‍दता, परिग्रह, वासना आदि के भाव पैदा होते हैं। इन्‍हीं बुरे भावों पर नियंत्रण के लिए दस धर्म पालन रूपी ब्रेक लगा दिया जाता है। इसके पीछे भावना यही होती है कि प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बना रहें। साथ ही हम धर्म का पालन करने के साथ ध्‍यान भी करते रहें। जैन धर्म के अनुयाई क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्‍य, संयम, तप, त्‍याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य के माध्‍यम से आत्‍मसाधना करते हैं। ये दस धर्म जीने की कला सिखाने के साथ पाप को धोने का काम करते हैं। देखने में रहा है कि वर्तमान में लोग एक दूसरे की भावना को नहीं समझकर एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं। आपस का प्रेम समाप्‍त होते जा रहा हैं। इन सबसे बचने के लिए पर्युषण पर्व इंसान के जीवन में संजीवनी का काम करने वाला है। क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्‍य, आकिंचन्‍य धर्म से मासिक स्‍वस्‍थता आती हैं। मन और मस्तिष्‍क में किसी के लिए, किसी भी प्रकार से शत्रुता, नीचा दिखाने के विचार नहीं रह जाते है और ही किसी के प्रति वैरभाव रहता है। संयम, तप, ब्रह्मचर्य से शारीरिक स्‍वस्‍थता आती है। जैन ग्रंथों में पर्युषण की परिभाषा देते हुए कहा गया है- परि समंतात् ऊषन्‍ते दह्यांते पापकर्माणि यस्मिन् तत् पर्यूषण अर्थात जो पाप कर्मों को जालाता है, पाप क्षयकर आत्‍मधर्मों को उद्घाटित करता है, आत्‍मगुणों को प्रकट करता हैं, उसे पर्युषण कहते हैं। गांठ ग्रंथि- कषाय, माह आदि रूपी गांठ को खुलने की जो कला सिखाता हैं, उसे पर्युषण कहते हैं। दस दिन के संकल्‍प भी हैं। ये इस प्रकार हैं- मैंने जो पाप किए हैं, उनका प्रायश्चित करता हूं। मैं अब आगे से पाप नहीं करूंगा। विनम्र बनकर अपनी गलती को स्‍वीकार करूंगा। अपने दुखों का कारण अपने कर्मों को समझूंगा। वृक्ष, पृथ्‍वी, जल, अग्नि, वायु का उतना ही उपयोग करूंगा, जितना जीने के लिए आवश्‍यक होगा।  

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