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created Jul 23rd 2021, 06:40 by lovelesh shrivatri
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जनसंख्या में गिरावट का डर दुनिया में चिंता की वजह बन रहा है। अमरीका, यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में प्रजनन दर में गिरावट को देखते हुए माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बच्चे कम होंगे और अथव्यवस्था में भी मंदी रहेगी। यानी भविष्य की चिंताजनक तस्वीर ऐसी होगी, जिसमें बच्चा गाड़ी से लेकर खेल के मैदान तक खाली नजर आएंगे। प्रजनन दर में गिरावट पहली बार चिंता का कारण नहीं बनी है। इसकी शुरूआत 20वीं सदी के मध्य में हुई, जब वैश्विक मृत्यु दर में गिरावट आ रही थी लेकिन प्रजनन दर उच्चतर बनी हुई थी। नतीजा खास तौर पर एशिया व अफ्रीका के उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के रूप में सामने आया।
चूंंकि अमरीका ने आव्रजन कानून में थोड़ी ढील दे दी थी, इसलिए उसे डर था कि विकासशील देशों की बढ़ती आबादी उनके अपने श्वेत नागरिकों पर भारी पड़ेगी। इसी सोच के चलते नस्लवाद को बल मिला। ऐसी आशंकाओं के कारण पर्यावरण, प्रजनन अधिकार और परोपकारी संगठनों के एक नेटवर्क ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रचार शुरू कर दिया। इन समूहोंं ने पूर्व में गुलाम रहे देशों की सरकारों के साथ गठबंधन बनाए, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण अभियान को आर्थिक विकास को गति देने और गरीबों की संख्या घटाने का जरिया मान लिया।
भारत में 1960 के दशक में जनसंख्या नियंत्रण के लिए इंट्रयूटरिन डिवाइस (आइयूडी) अभियान को अमरीका का समर्थन मिला। पहले ही वर्ष में करीब 8 लाख महिलाओं को आइयूडी लगाया गया। जिससे भारत को फायदा हुआ। आर्थिक व सामाजिक बदलावों के बीच फिर वह दौर देखा गया जब कई देश में जन्म व मृत्यु दर में समान रूप से गिरावट देखी गई। जनसांख्यिकी विशेषज्ञ इसे प्रजनन संक्रांति अवस्था कहते है। विश्व भर में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार धीमी पड़ गई। आज समस्या विपरीत है, यह है- घटती जनसंख्या की। ऐसे में हम जनसंख्या के बारे में क्या नया दृष्टिकोण अपना सकते है।
चूंंकि अमरीका ने आव्रजन कानून में थोड़ी ढील दे दी थी, इसलिए उसे डर था कि विकासशील देशों की बढ़ती आबादी उनके अपने श्वेत नागरिकों पर भारी पड़ेगी। इसी सोच के चलते नस्लवाद को बल मिला। ऐसी आशंकाओं के कारण पर्यावरण, प्रजनन अधिकार और परोपकारी संगठनों के एक नेटवर्क ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रचार शुरू कर दिया। इन समूहोंं ने पूर्व में गुलाम रहे देशों की सरकारों के साथ गठबंधन बनाए, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण अभियान को आर्थिक विकास को गति देने और गरीबों की संख्या घटाने का जरिया मान लिया।
भारत में 1960 के दशक में जनसंख्या नियंत्रण के लिए इंट्रयूटरिन डिवाइस (आइयूडी) अभियान को अमरीका का समर्थन मिला। पहले ही वर्ष में करीब 8 लाख महिलाओं को आइयूडी लगाया गया। जिससे भारत को फायदा हुआ। आर्थिक व सामाजिक बदलावों के बीच फिर वह दौर देखा गया जब कई देश में जन्म व मृत्यु दर में समान रूप से गिरावट देखी गई। जनसांख्यिकी विशेषज्ञ इसे प्रजनन संक्रांति अवस्था कहते है। विश्व भर में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार धीमी पड़ गई। आज समस्या विपरीत है, यह है- घटती जनसंख्या की। ऐसे में हम जनसंख्या के बारे में क्या नया दृष्टिकोण अपना सकते है।
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