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सॉंई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Jul 22nd 2021, 05:40 by lucky shrivatri


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अध्‍यात्‍म यदि प्राण है, तो विज्ञान उसी का शरीर है। ये दोनों इतने अभिन्‍न है कि इन्‍हें अलग नहीं किया जा सकता। शरीर की समस्‍त क्रियाविधि का विश्‍लेषणात्‍मक अध्‍यन विज्ञान का विषय है और प्राण से संबधित समस्‍त ज्ञान अध्‍यात्‍म का क्षेत्राधिकार है। जिस प्रकार विज्ञान ने समस्‍त जड़-पिण्‍डों की भांति शरीर का संपूर्ण ज्ञान प्रस्‍तुत किया गया है, उसकी प्रकार अध्‍ययात्‍म भी प्राण-तत्‍व के संबंध में सभी शंकाओं से रहित विश्‍लेषण प्रस्‍तुत करता है। इसी अध्‍यात्‍म के कारण सदियों से विश्‍व में भारत का विशेष स्‍थान है। सापेक्षता सिद्धांत के जन्‍मदाता अल्‍बर्ट आइंसटीन के अनुसार संसार में ज्ञान और विश्‍वास दोनों है। जहां ज्ञान को विज्ञान कहेंगे, वहीं विश्‍वास को धर्म या अध्‍यात्‍म कहेंगे। वे कहते है, मैं ईश्‍वर को मानता हूं, क्‍योंकि इस सृष्टि के अद्भुत रहस्‍यों में ईश्‍वरीय शक्ति ही दिखाई देती है। अब विज्ञान भी इस बात का समर्थन कर रहा है कि संपूर्ण सृष्टि का नियम एक अदृश्‍य चेतना कर रही है। स्‍वामी विवकानंद भी अध्‍यात्‍म और विज्ञान को एक-दूसरे का विरोधी नही मानते थे। उनका विचार था कि पाश्‍चात्‍य विज्ञान का भारतीय वेदांत के साथ समन्‍वय करके विश्‍व में सुख-समृद्धि शांति उत्‍पन्‍न की जा सकती है।  

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