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रोहित कुमार ध्येय आईएस टेस्ट
created Jun 11th 2021, 18:35 by RohitKumar26
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राजा बलभद्र की शहादत के बाद अंग्रेजों के बाद अंग्रेजों ने बहराइच नानपारा के इस इलाके पर अपना नियंत्रण स्थापित किया, हालांकि राजा बलभद्र सिंह की शहादत से उपजे असंतोष के कारण इन्हें प्रतिरोध का भी बड़ा सामना करना पड़ा। लेकिन धीरे-धीरे अंग्रेजों ने इस इलाके के छोटे-छोटे रियासतों को खरीद लिया या जबरन खुद में मिला लिया। इसके पीछे जो मूल मंशा थी वह रणनीतिक थी। असल में 1857 के विद्रोह के बाद बेगम हजरत महल और नाना साहब सहित अनगिनत क्रांतिकारियों ने नेपाल में शरण ली हुई थी और नेपाल की सीमा बहराइच नानपारा इलाके से सटी हुई थी। तो क्रांतिकारियों के संभावित हमले और उन्हें रोकने के लिए अंग्रेजों की यहां मौजूदगी जरूरी थी। लेकिन अंग्रेजों ने जब यहां के घने और बेशकीमती जंगलों को देखा तो उनकी आंखे खुली की खुली रह गयी। अंग्रेजों को लगा कि उनके औद्योगिक हितों के लिए तो यह सबसे बड़ा केंद्र बनने की संभावना रखता है। इस वक्त अंग्रेज लखीमपुर खीरी और बहराइच के इस इलाके से लेकर असम के घने जंगलों तक अपनी निगाहें जमाये हुए थे। यह वही दौर था जब 1853 में बम्बई से थाने के बीच रेलवे लाईन बिछाने का कार्य जोरों पर था। और यही से रेलवे, वनटंगिया और ब्रितानी हुकूमत के साम्राज्यवादी मंसूबों की कहानी एक दूसरे से जोड़ती हुई चलती है।
तराई के इस इलाके में कदम रखते ही अंग्रेजों के लिए मानो एक नयी दिल्ली ही मिल गयी हो। इसकी अनेक वजहों में से एक बड़ी वजह थी यहां पायी जाने वाली साखू की लकड़ियां... साखू की लकड़ियों के बारे में कहा जाता है कि 100 वर्ष खड़ा, 100 वर्ष पड़ा और 100 वर्ष खड़ा यानी लगभग 300 वर्षो तक साखू की लकड़ियां काम आ सकती है। अपनी मजबूती के लिए मशहूर यह लकडियां अग्रेजों के साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए बेहद अहम थी। नौसेना के दम पर ख़ड़ी की गई अंग्रेजी हुकूमत के जहाजी बेड़ो के लिए ये लकडिया बहुमूल्य थी और लन्दन जैसे शहरों की बुलन्द इमारतें भी इन्हीं लकडियों से सजने लगी थी। यह एक गोल्डेन वुड थी। अंग्रेजों के लिए मालूम हो कि यह वही समय था जब रेलवे का भी विस्तार हो रहा था और रेलवे की पटरियों को बिछाने के लिए भी साखू की लकड़ियां बड़े काम की थी।
तराई के इस इलाके में कदम रखते ही अंग्रेजों के लिए मानो एक नयी दिल्ली ही मिल गयी हो। इसकी अनेक वजहों में से एक बड़ी वजह थी यहां पायी जाने वाली साखू की लकड़ियां... साखू की लकड़ियों के बारे में कहा जाता है कि 100 वर्ष खड़ा, 100 वर्ष पड़ा और 100 वर्ष खड़ा यानी लगभग 300 वर्षो तक साखू की लकड़ियां काम आ सकती है। अपनी मजबूती के लिए मशहूर यह लकडियां अग्रेजों के साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए बेहद अहम थी। नौसेना के दम पर ख़ड़ी की गई अंग्रेजी हुकूमत के जहाजी बेड़ो के लिए ये लकडिया बहुमूल्य थी और लन्दन जैसे शहरों की बुलन्द इमारतें भी इन्हीं लकडियों से सजने लगी थी। यह एक गोल्डेन वुड थी। अंग्रेजों के लिए मालूम हो कि यह वही समय था जब रेलवे का भी विस्तार हो रहा था और रेलवे की पटरियों को बिछाने के लिए भी साखू की लकड़ियां बड़े काम की थी।
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