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जीने की राह
created May 26th 2021, 09:41 by Soniya S
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धुआं उठता है तो रोशनी दीये से, फिर दीया बाती से और उसके बाद बाती तेल से कारण पूूछती है- धुआं क्यों उठा? इस पर सबका जवाब मिलता है तेरे कारण। अब कौन-किसको दोषी बताए। जीवन में कभी-कभी ऐसा हो जाता है। शायद ऐसी ही अव्यवस्था और अंधकार के कारण सिद्धार्थ गौतम उस समय हिंदू धर्म से बाहर निकलकर आत्मज्ञान के लिए वन की ओर चल दिए थे। बुद्ध बन जाने के बाद जब लौटे तो पत्नी यशोधरा ने उनसे पूछा था- जिस आत्मज्ञान के लिए आप मुझे और अपने बेटे को छोड़कर रात को इस तरह बिना बताए चले गए थे, क्या वह आपको मिल गया? यदि मिल गया तो क्या वह घर में रहकर नहीं मिल सकता था? इसके लिए वन जाना जरूरी था? तब अपने उत्तर में बुद्ध ने कहा था- जो मुझे मिला है उसके बाद ये सारे सवाल बेकार हो जाते हैं। आज हमारे सामने बुद्ध की यह बात बहुत उपयोगी है। इस समय कुछ ऐसा प्राप्त कर लिया जाए जो हमें आत्मज्ञान कराए, शांति पहुंचाए। कुल मिलाकर बुद्ध बन जाएं। बुद्धिमानी इसी में होगी, अन्यथा बुद्धू तो बनाए ही जा रहे हैं। बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त करने की जो विधि बताई थी, वह है ध्यान। ध्यान, यानी योग का एक भाग, एक चरण। तो प्रतिदिन योग जरूर किया जाए। योग करना मतलब बुद्ध हो जाना।
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