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created Mar 14th 2021, 17:15 by Nitin tkg


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एक बार दो बहु-मंजिली इमारतों के बीच बंधी हुई एक तार पर लम्‍बा सा बांस पकड़े एक नट चल रहा था, उसने अपने कन्‍धे पर अपना बेटा बैठा रहा था। सैंकड़ो, हजारो लोग दम साधे देख रहे थे। सधे कदमों से, तेज हवा से जूझते हुए अपनी और अपने बेटे की जिंदगी दांव पर लगा एस कलाकार ने  दूरी पूरी कर ली। भीड़ आहृाद से उछल पड़ी, तालियां सीटियां बजने लगी। लोग उस कलाकार की फोटो खींच रहे थे, उसके साथ सेल्‍फी ले रहे थे, उससे हाथ मिला रहे थे। और वो कलाकार माइक पर आया, भीड़ को बोला:  
क्‍या आपकों विश्‍वास  है कि मैंं यह दोबारा भी कर सकता हूं। भीड़ चिल्‍लाई  हां-हां तुम कर सकते हो। उसने पूछा: क्‍या आपको विश्‍वास है। भीड़ पून: चिल्‍लाई हां। पूरा विश्‍वास है हम तो शर्त भी लगा सकते है कि तुम सफलता पूर्वक इसे दोहरा भी सकते हो। कलाकार ने पुन: बोला पूरा-पूरा विश्‍वास है ना। भीड़ बोली:- हां-हां कलाकर बोला तो ठीक है कोई मुझे अपना बच्‍चा दे दे, मैं उसे अपने कंधे पर बैठा कर रस्‍सी पर चलूगा। फिर क्‍या सामने चुप्‍पी, खामोशी, शांति फैल गयी। कलाकार बोला: डर गए.. अभी तो आपको विश्‍वास था कि मैं कर सकता हूं। असल में आपका यह विश्‍वास है, मुझमें विश्‍वास नहीं है। दोनों विश्‍वासों में फर्क है साहब  
यही कहना है, ईश्‍वर है ये तो विश्‍वास है परन्‍तु ईश्‍वर में सम्‍पूर्ण विश्‍वास नहीं है  

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