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बंसोड टायपिंग इन्स्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सभी प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करवायी जाती है।
created Feb 23rd 2021, 02:16 by SARITA WAXER
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मूलशंकर बेहद ही गरीब परिवार में पले बढ़े उनका पालन पोषण अभावग्रस्त रहा गुरुकुल में किसी प्रकार दाखिला मिला मूला शंकर पढ़ने में बड़े ही मेधावी छात्र थे। वह अन्य छात्रों से अलग विचार रखते थे और पढने तथा समाज के बारे में वह विशेष अध्ययन किया करते थे। शिक्षा गुरुकुल स्तर से जब पूर्ण हुई सभी शिष्य अपने गुरु को गुरु दक्षिणा के रूप में अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ ना कुछ अपने गुरु को अर्पण कर रहे थे। कोई गाय दान कर रहा था, कोई अनाज दान कर रहा था, कोई मुद्राएं दान कर रहा था। किंतु मुलशंकर के सामर्थ्य में इस प्रकार का दान करना नहीं था। मुलशंकर अपने माता के पास पहुंचे और गुरु दक्षिणा का विषय अपनी माता को समझाया। माता को भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह मुलशंकर को गुरु दक्षिणा के लिए क्या भेंट दे ? काफी देर सोच विचार के उपरांत माता ने एक लॉन्ग और सुपारी कपड़े में बांधकर गुरु दक्षिणा के लिए मूलशंकर को दिया। मुलशंकर यह भेंट लेकर अपने गुरु के समक्ष प्रस्तुत हुए और गुरु दक्षिणा के रूप में वह पोटली भेंट की। ऐसा देखकर अन्य सहपाठी छात्र मुलशंकर का उपहास करने लगे। मुलशंकर भी लज्जा और गिलानी के भाव के बोझ से दवा हुआ था। पोटली गुरु को अर्पण करते ही वह गुरु के चरणों में जोर–जोर से रोने लगा और गुरु से क्षमा याचना करने लगा यही मेरे सामर्थ्य मे था जो मैंने आपको अर्पण किया। गुरु ने मूलशंकर के समर्पण भाव को देखकर गले से लगाया और उसे हिम्मत दी और कहा- कौन कहता है तुम्हारे पास देने को कुछ नहीं है, तुम मुझे अन्य शिष्यों से प्रिय हो। तुम पढ़ने में सबसे होनहार हो, क्या यह मेरे लिए कम है। मुझे देना ही चाहते हो तो एक वचन दो कि तुम मेरे ज्ञान को समाज के लिए प्रयोग में लाओगे, समाज का कल्याण हो ऐसा प्रयास करोगे, मेरी शिक्षा तभी सफल होगी जब समाज मैं इस शिक्षा का प्रयोग हो सके। मूलशंकर उठे और अपने गुरु को आजीवन ब्रम्हचर्य रहकर समाज की सेवा करने का वचन दिया। इतना ही नहीं उन्होंने समाज के लिए अनेक प्रकार के कार्यक्रम चलाए। वेदों की ओर लोटो का नारा देते हुए समाज को एक नई दिशा प्रदान की। यही व्यक्ति आगे चलकर दयानंद सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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