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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Jan 27th 2021, 07:16 by Jyotishrivatri
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संयम का मतलब होता है व्रत-नियम में बंध जाना। हरके क्षेत्र में संयम की बड़ी आवश्यकता है। जब तक बंधन संयम नहीं है। तब तक मुक्ति नहीं है। जिस प्रकार ऊंट के लिए नकेल, घोड़ों के लिए लगाम, मोटर के लिए ब्रेक की आवश्यकता है, उसी प्रकार मनुष्य के लिए ब्रेक, बंधन यानी संयम की आवश्यकता है। मनुष्य पर ब्रेक नहीं हो तो इससे ज्यादा खतरा और किसी से नहीं होता। जब संयम नहीं है और मस्तिष्क में विकार आ जाता है, तब वह किसी को सुखी नहीं बना सकता। हम दूसरे पदार्थो को कंट्रोल में रखकर व्यवस्था देख रहे है, परन्तु अपने पर कंट्रोल नहीं चाहते। समीचीन रूप से जो चलना, जानना और आचरण करना है, उसका नाम संयम है। संयम का अर्थ है प्राण और इन्द्रियों को कंट्रोल में रखना। दया का मतलब प्राणी संयम और दमन का मतलब इन्द्रिय संयम है। जब ज्ञान धारा जानने की शक्ति को बिना कंट्रोल के छोड़ देते है, तभी दुख का अनुभव होता है। उपवास करना, रस छोड़ना आदि ही संयम नहीं है।
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