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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Jan 25th 2021, 10:40 by GuruKhare


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प्राचीन काल में सदन कसाई ईश्‍वर के परम भक्‍त थे। जाति के कसाई होने के वाबजूद उनके हृदय में हमेशा दया का संचार रहता था। जातिगत और पारिवारिक आजीविका का स्रोत होने के कारण वह यह काम करते थे। पशु वध उनसे होता नहीं था, इसलिए दूसरे कसाईयों के यहां से मांस लाकर बेचा करते थे।  
    एक दिन नदी के किनारे भ्रमण करते समय उनकी नजर एक चिकने पत्‍थर पर पड़ी। उन्‍होंने उसे उठाया और देखने लगे। विचार किया कि इस पत्‍थर का इस्‍तेमाल तौलने के बाट के रूप में ब‍ढि़या हो सकता है। वे उस पत्‍थर को अपने साथ दुकान में ले गये और उससे मांस तौलने के रूप में इस्‍तेमाल करने लगे।
    वे जिस पत्‍थर को साधारण समझ रहे थे, वास्‍तव में वह शालिग्राम था। सदन कसाई के घर में भगवान शालिग्राम विराजमान हो गये थे। सदन इस तथ्‍य से बिल्‍कुल अनजान थे। एक दिन एक साधु सदन की दुकान के पास से गुजरे। अनायास ही उनकी नजर दुकान में रखे शालिग्राम पर पड़ गयी। उन्‍होंने सदन को इशारे से अपने पास बुलाया और बाट देने का आग्रह किया। दूसरा पत्‍थर नदी से लाने का विचार करके सदन उनको देने के लिए राजी हो गये।
    साधु महाराज ने शालिग्राम को गंगा जल से पवित्र किया। उनको स्‍थापित किया और विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। उसी रात साधु महाराज को स्‍वप्‍न में भगवान के दर्शन हुए। उन्‍होंने साधु को धिक्‍कारते हुए अपने को पुन: सदन कसाई की दुकान में पहुंचाने का आदेश दिया। उन्‍होंने कहा कि तुम मुझे भक्‍त सदन के यहां पहुंचा दो। उसके बिना यहां मुझे एक क्षण भी रास नहीं रहा है। साधु महाराज ने पूरी रात करवटें बदल कर बिताई। सुबह उठते ही सीधे सदन की दुकान की तरफ भागे। उन्‍होंने पूरी घटना सदन को बताई और भगवान शालिग्राम को उनके हाथों में सौंप दिया।  
    भगवान शालिग्राम का अपने यहां इस तरह का इस्‍तेमाल करने के लिए सदन को आत्‍मग्‍लानि होने लगी। उन्‍होंने मन-ही-मन भगवान से क्षमा मांगी। अब सदन का व्‍यवसाय में मन नहीं लग रहा था। वे तो ईश्‍वर भक्ति में डूबते चले गये थे। वे भगवान शालिग्राम को लेकर श्रीजगन्‍नाथपुरी के दर्शन के लिए चल दिए।
    एक दिन वे एक गृहस्‍थ के यहां रात को ठहरे। उस घर में स्‍त्री और पुरुष दो ही व्‍यक्ति थे। स्‍त्री का चरित्र ठीक नहीं था। वह सदन पर मोहित हो गयी। रात को मौका देखकर वह उनके पास आई और प्रेम याचना करने लगी। सदन ने उसकी याचना को विनम्रपूर्वक मना कर दिया। इस पर उस स्‍त्री को लगा कि सदन उसके पति से डर रहे हैं कि पता लगने पर उनकी बहुत कुटाई होगी। सदन के साथ हमेशा के लिए रहने का विचार करके उस स्‍त्री ने घर में रखी तलवार उठाई और सोते हुए पति की गरदन धड़ से अलग कर दी। वह सदन के पास आयी और कहने लगी कि उसने रास्‍ते के कांटे को हमेशा के लिए हटा दिया है अब उनके बीच में कोई नहीं है। हम दोनों एकसाथ सुखपूर्वक रहेंगे।
     

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