Text Practice Mode
साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jan 24th 2021, 13:46 by lucky shrivatri
4
458 words
2 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
बालश्रम एक वैश्विक समस्या है। भारत में यह अत्यंत गंभीर है। इसका मूल कारण गरीबी और अशिक्षा है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 24 बालकों के नियोजन के प्रतिषेध की व्याख्या करता है। इसके अनुसार 14 वर्ष के कम आयु वाले किसी भी बच्चे को कारखानों, खानो या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नहीं लगाया जा सकता। बावजूद इसके देश में बाल श्रमिकों की संख्याा बहुत अधिक है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2016 तक दुनिया में अनुमानत: पांच और 17 वर्ष की उम्र के बीच के 152 मिलियन बच्चों को अवांछनीय परिस्थितियों में श्रम करने को मजबूर किया जा रहा है। भारत में 2011 की जनगणना के आंकडों के अनुसार 5 से 14 वर्ष तक के 10 मिलियन से अधिक बच्चे बालश्रम का शिकार है। वस्तुत: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 18 वर्ष, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 15 वर्ष, अमरीका में 12 वर्ष और भारत में 14 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों को बाल श्रमिक माना जाता है। इस समस्या के मद्देनजर भारत में 1979 में सरकार ने गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया था। गुरुपाद स्वामी समिति की सिफारिश में गरीबी को मुख्य कारण माना गया और ये सुझाव दिया गया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए एवं उन क्षेत्रों के कार्य के स्तर में सुधार किया जाए। साथ ही कहा कि बाल मजदूरी करने वाले बच्चों की समस्याओं के निराकरण के लिए बहु आयामी नीति की जरूरत पर भी बल दिया गया। वर्ष 1986 में समिति के सिफारिश के आधार पर बाल मजदूरी प्रतिबंध विनियमन अधिनियम अस्तित्व में आया, जिसमें विशेष खतरनाक व्यवसाय व प्रक्रिया के बच्चों के रोजगार एवं अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्तों का निर्धारण किया गया। इसके बाद सन् 1987 में बाल मजदूरी के लिए विशेष नीति बनाई गई, जिसमें जोखिम भरे व्यवसाय एवं प्रक्रियाओं में लिप्त बच्चों के पुनर्वास पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। 10 अक्टूबर 2006 तक बालश्रम कानून को इस असमंजस में रखा गया कि किसे खतरनाक और किसे गैर खतरनाक बाल श्रम की श्रेणी में रखा जाए। उसके बाद बाल श्रम निवारण अधिनियम 1986 में संशोधन कर ढाबों, घरों, होटलों में बालश्रम करवाने को भी दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया। बाल अधिकारों के संरक्षण और बालश्रम प्रतिषेध के संदर्भ में देश में पर्याप्त कानून हैं, लेकिन इस दिशा में सरकारी तंत्र की शिथिलता तथा समाज की उदासीनता के कारण इस महत्वपूर्ण समस्या का निराकरण नहीं हो पा रहा है। इस कारण बच्चों का ना केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक शोषण भी हो रहा है, जो सीधा देश के भविष्य को प्रभावित करता है। इसके समाधान के लिए कानूनों की पालना के साथ गरीबी की समस्या पर भी प्रहार की आवश्यकता है, ताकि कोई परिवार अपने बच्चों को मजदूरी पर न भेजे।
saving score / loading statistics ...