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साँई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Jan 23rd 2021, 04:09 by sandhya shrivatri


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राजनीतिक रूप से अत्‍यंत अप्रभावी, सामाजिक रूप से बेहद विछिन्न और आर्थिक रूप से लड़खड़ाते अमरीका के 46वें राष्‍ट्रपति बनने के बाद कैपिटल हिल की ऐतिहासिक सीढि़यों पर खड़े हो कर जो बाइडन ने जो कुछ कहा, वह ऐतिहासिक महत्‍व का है। क्‍यों? इसलिए कि अमरीका के इतिहास का ट्रंप-काल बीतने के बाद बाइडन को जो कुछ भी कहना था वह अपने अमरीका से ही कहना था, और ऐसे में वे जो भी कहते वह ऐतिहासिक ही हो सकता था। इसलिए तब खूब तालियां बजीं, जब बाइडन ने कहा कि यह अमरीका का दिन है, यह लोकतंत्र का दिन है। यह एकदम सामान्‍य-सा वाक्‍य था जो ऐतिहासिक लगने लगा, क्‍योंकि पिछले पांच सालों से अमरीका ऐसे वाक्‍य सुनना और गुनना भूल ही गया था। यह वाक्‍य घायल अमरीकी मन पर मरहम की तरह लगा। लोकतंत्र है ही ऐसी दोधारी तलवार जो कलुष को काटती हैं, शुभ को चालना देती है। यह अलग बात है कि तमाम दुनिया में लोकतंत्र की आत्‍मा पर सत्ता के भूख की ऐसी गर्द पड़ी है कि वह खुली सांस नहीं ले पा रहा है। तंत्र ने उसका गला दबोच रखा है। हम पहले से जानते थे कि बाइडन, बराक ओबामा की तरह मंत्रमुग्‍ध कर देने वाले वक्‍ता नहीं हैं, बल्कि वह एक मेहनती राजनेता हैं। चूंकि अमरीका को ट्रंप से मुक्ति चाहिए थी, इसलिए भी इतिहास ने इस भूमिका के लिए बाइडन का कंधा चुना। ट्रंप बौद्धिक रूप से इतने सक्षम थे ही नहीं कि अपने देश की राजनीतिक सांस्‍कृतिक विरासत को समुन्‍नत करने की स्‍वाभाविक पदसिद्ध जिम्‍मेवारी को समझ पाते। इस जिम्‍मेवारी के निर्वहन में विफल कितने ही महानुभाव हमें इतिहास के कूड़ाघर में मिलते हैं। डंपिंग ग्राउंड केवल नगरपालिकाओं के पास नहीं होता, इतिहास के पास भी होता है। शपथ ग्रहण करने के बाद बाइडन जब कहते हैं कि हम एक महान राष्‍ट्र हैं, हम अच्‍छे लोग हैं तब वह अमरीका के मन को ट्रंप के दौर की संकीर्णता से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। जब उन्‍होंने कहा कि मैं सभी अमरीकियों का राष्‍ट्रपति हूं- सारे अमरीकियों का, हमें एक-दूसरे की इज्‍जत करनी होगी और यह सावधानी रखनी होगी कि सियासत ऐसी आग बन जाए जो सबको जलाकर राख कर दे तो वह गहरे बंटे हुए अपने समाज के बीच पुल भी बना रहे थे और अमरीकियों को सत्ता राजनीति की मर्यादा भी समझा रहे थे। बाइडन ने अमरीकी सीमा के बाहर के लोगों से यानी दुनिया से सिर्फ इतना ही कहा कि हमें भविष्‍य की चुनौतियों से ही नहीं, आज की चुनौतियों से भी निबटना है। ट्रंप ने आज को ही तो इतना विद्वप कर दिया है कि भविष्‍य की बातों का बहुत संदर्भ नहीं रह गया है। राष्‍ट्र को संबोधित करने की यह परंपरा अमरीका के पहले राष्‍ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन ने 30 अप्रैल 1789 को शुरू की थी। यह परंपरा और कुछ नहीं, राष्‍ट्र-मन को छूने और उसे उदात्त बनाने की कोशिश है। बाइडन के इस सामान्‍य भाषण में असामान्‍य था अनुभव की लकीरों से भरे उनके आयुवृद्ध चेहरे से झलकती ईमानदारी। वह जो कह रहे थे मन से कह रहे थे और अपने मन को अमरीका का मन बनाना चाहते थे।  

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