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बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0

created Dec 4th 2020, 11:10 by Ashu Soni


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हमारे अपने भीतर आगे-पीछे की बातों के गुबार कम नहीं होते। बाहर का प्रदूषण मन के उस मौसम को और बिगाड़ देता है। उदासी और खालीपन का धुआं बढ़ता रहता है। कुछ करने का मन नहीं होता। पर चैन की सांस लेनी है तो कुछ तो करना होगा ही। हवा में खुशियां भी छुपी होती हैं। प्रदूषण केवल सेहत पर असर नहीं डालता, हमारी खुशियों को भी निशाना बनाता है। गंदी और जहरीली हवा फेफड़े के रास्‍ते, दिमाग में पहुंचकर खलबली मचाने लगती है। बिगड़े मौसम का असर हमारे मूड बर्ताव पर भी पड़ने लगता है। शोध कहते हैं कि हमें प्रदूषण की भावनात्‍मक कीमत चुकानी पड़ती है। उदासी और निराशा की परतें दिमाग पर छाई रहती हैं, जो हमारे फैसलों और काम करने के तरीकों पर असर डाल सकती हैं। चिड़चिड़ापन और गुस्‍सा बढ़ने लगता है। यह तो हुई बाहरी प्रदूषण के असर की बात। हमारे दिमाग में आगे-पीछे के गुबार भी कम नहीं होते। लगातार कई तरह की उठापठक चलती रहती है। कई बार गड़बड़ी अपने विचारों में होती है तो कई बार दूसरों से जुड़ी बातों का कचरा दिमाग को दूषित करता रहता है। कारण जो हो, पर भीतर के प्रदूषण से जितना जल्‍दी हो, निजात पा ही लेना चाहिए।  
कई दिनों का खालीपन एकदम से नहीं भरता। कई बार खुद को खुश रखना टेढ़ी खीर बन जाता है। फिर खुशी पाने का कोई एक तय तरीका है भी नहीं। खुद को अच्‍छा एहसास कराने के लिए कई कोशिशें करनी पड़ती हैं। संतों से लेकर आधुनिक कोच यही कहते हैं कि खुद को खुश रखने की पहली जिम्‍मेदारी हमारी अपनी है और हमसे बेहतर कोई हमें खुश रख भी नहीं सकता। सॉल्‍यूशन फोकस्‍ड साइकोथेरेपिस्‍ट सारा मौडी कहती हैं, अपने जीवन की गाड़ी के ड्राइवर आप हैं। अपनी यात्रा में कौन सा रास्‍ता लेना है यह आप तय करेंगे। दूसरे असर डाल सकते हैं, पर तब भी आपको संतुलन रखते हुए ड्राइविंग करनी है। ठान लेंगे तो खुद को खुश रखना मुश्किल भी नहीं है। छोटे-छोटे बदलाव ही हमें खुशियों की ओर ले जाएंगे।  
 
 

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