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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Oct 22nd 2020, 05:56 by akash khare


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अपीलार्थी की ओर से यह विविध अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गई  है कि अधीनस्‍थ न्‍यायालय के द्वारा वादी का आवेदन पत्र विधि विधान के विपरीत मनमाने ढंग से संभावनाओं के आधार पर निरस्‍त कर दिया गया है। अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा अस्‍थाई निषेधाज्ञा के संबंध में दस्‍तावेजी साक्ष्‍य हेतु दस्‍तावेज एवं स्‍वयं का शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया है जिसके आधार पर यह स्‍पष्‍ट है कि विवादित भूमि पर पूर्व में मनीष उर्फ मुन्‍ना का कब्‍जा लगभग पचास वर्षों से निरंतर बना हुआ था तथा मनसुख के द्वारा पंजीकृत वसीयतनामे के आधार पर वादी रामप्रसाद से प्रदान की गई तथा इसी आधार पर नगर परिषद मलहरा में विवादित भूमि पर बने हुये मकान का नामांतरण किया गया तथा रामप्रसाद से निरंतर टैक्‍स वसूल किया जाता है तथा रामप्रसाद के द्वारा बनायी गई बाउण्‍ड़ी को तोड़े जाने का प्रयास परषिद द्वारा किये जाने के कारण यह दावा प्रस्‍तुत किया था जिससे कि स्‍पष्‍ट है कि वादी काफी लंबे समय से निरंतर स्‍थापित कब्‍जे में है, जिससे कि वादी का वाद प्रथम दृष्‍टया सुद्रढ़ होने के बाद भी पक्ष में मानने की भूल की है। अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा मात्र यह कह देना कि शासकीय भूमि की वसीयत करने का अधिकारी नहीं था यह अंतिम विवेचना का विषय हो सकता है परंतु कब्‍जे के संबंध में मान्‍य किया जाना चाहिये था जिससे मान्‍य करने की अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा भूल की गई है। प्रतिवादीगण द्वारा वादी के कब्‍जे को आंशिक रूप से मान्‍य किया गया है ऐसी दशा में यदि वादी के कब्‍जे में कोई छेड़छाड़ की जाती है अथवा किसी भी प्रकार का निर्माण कर वास्‍तविक स्थिति में परिवर्तन कर दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में सुविधा का संतुलन वादी के पक्ष में होना, मानने की भूल की है। अत: अधीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा पारित आदेश को निरस्‍त करने हेतु वादी के पक्ष में अस्‍थायी निषेधाज्ञा प्रकरण के अंतिम निराकरण तक जारी किये जाने का आदेश पारित किये जाने का निवेदन किया गया है।
    प्रत्‍यर्थी की ओर से विचारण न्‍यायालय द्वारा पारित किये गये, आलोच्‍य आदेश के समर्थन में अपने तर्क प्रस्‍तुत किये गये हैं और यह निवेदन किया गया है कि विचारण द्वारा पारित किया गया आदेश, विधि संवत है और प्रकरण में प्रस्‍तुत दस्‍तावेजों पर आधारित है। अत: उसमें हस्‍तक्षेप करने की कोई आवश्‍यकता नहीं है, बल्कि अपीलार्थी/वादी के द्वारा प्रस्‍तुत की गई यह विविध दीवानी अपील सारहीन है। अत: उसे निरस्‍त किया जाये।
  

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