Text Practice Mode
BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Oct 21st 2020, 11:52 by ddayal2004
0
302 words
6 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर बेटियों की शादी की न्यूनतम आयु दोबारा तय करने की बात कही। इससे पूर्व उन्होंने लाल किले से दिए भाषण में भी इस संबंध में अपना वक्तव्य दिया था। दरअसल इस सोच के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारणों की भूमिका रही है। केंद्र सरकार का मानना है कि कम आयु में विवाह बेटियों के आत्मसम्मान पर अप्रत्यक्ष रूप से आघात पहुंचाता है। अनेक अध्ययन इस तथ्य को उद्घाटित करते आए हैं कि किशोर आयु में ब्याही गई लड़कियों की अपेक्षाकृत कहीं अधिक होती हैं, जिनका विवाह देर से होता है और जो अधिक शिक्षित होती हैं। जल्द विवाह बेटियों की शिक्षा और आत्मनिर्भरता, दोनों को ही बाधित करता है। कम आयु में विवाह और मां बनने पर लड़कियों के जीवन का जोखिम बहुत अधिक बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि किशोरावस्था में गर्भधारण से एनीमिया, मलेरिया, एचआइवी और अन्य यौन संचारित संक्रमण, प्रसवोत्तर रक्तचाप और मानसिक विकार जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
भारत में विवाह की न्यूनतम आयु खासकर महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सदैव ही एक विवादास्पद विषय रही है। प्राय: लोग तर्क देते हैं कि 18 साल तक लड़कियां विवाह योग्य परिपक्व हो जाती हैं, परंतु इसके पीछे का वास्तविक कारण कुछ और है। दरअसल समाज के एक बड़े वर्ग में आज भी बेटियां संबल नहीं, बल्कि दायित्व मानी जाती हैं। उस दायित्व के यथाशीघ्र मुक्ति का सहज मार्ग उनका विवाह ही प्रतीत होता है। आज भी अधिकांश भारतीय माता-पिता लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देना आर्थिक अपव्यय समझते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि में लड़कियों के जीवन का अंततोगत्वा लक्ष्य घर बसाना है, जिसके लिए उच्च शिक्षित होना आवश्यक नहीं है, परंतु ये तमाम कारण उस समय अर्थहीन हो जाते हैं जब बात लड़कियों के अधिकारों की आती है।
भारत में विवाह की न्यूनतम आयु खासकर महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सदैव ही एक विवादास्पद विषय रही है। प्राय: लोग तर्क देते हैं कि 18 साल तक लड़कियां विवाह योग्य परिपक्व हो जाती हैं, परंतु इसके पीछे का वास्तविक कारण कुछ और है। दरअसल समाज के एक बड़े वर्ग में आज भी बेटियां संबल नहीं, बल्कि दायित्व मानी जाती हैं। उस दायित्व के यथाशीघ्र मुक्ति का सहज मार्ग उनका विवाह ही प्रतीत होता है। आज भी अधिकांश भारतीय माता-पिता लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देना आर्थिक अपव्यय समझते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि में लड़कियों के जीवन का अंततोगत्वा लक्ष्य घर बसाना है, जिसके लिए उच्च शिक्षित होना आवश्यक नहीं है, परंतु ये तमाम कारण उस समय अर्थहीन हो जाते हैं जब बात लड़कियों के अधिकारों की आती है।
saving score / loading statistics ...