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सॉंई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Oct 20th 2020, 17:53 by Jyotishrivatri


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बिहु नृत्‍य भारत के असम राज्‍य का लोक नृत्‍य है जो बिहु त्‍योहार से संबंधित है। यह खुशी का नृत्‍य युवा पुरूषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है और इसकी विशेषता फुर्तीली नृत्‍य मुद्राऍं तथा हाथों की तीव्र गति है। नर्तक पारंपरिक रंगीन असमिया परिधान पहनते हैं। हालाकि बिहु नृत्‍य का मूल अज्ञात हैं, लेकिन इसका पहला आधिकारिक सबूत तब मिलता है जब अहोम राजा रूद्र सिंह ने 1694 के आसपास रोंगाली-बिहु के अवसर पर बिहु नर्तकों को रणघर क्षेत्रों में इसका प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया था। बिहु एक समूह नृत्‍य है जिसमें पुरूष और महिलाएं साथ-साथ नृत्‍य करते हैं किंतु अलग-अलग लिंग भूमिकाएं बनाए रखते हैं। आमतौर पर महिलाएं पंक्ति या वृत्‍त संरचना का सख्‍ती से पालन करती हैं। पुरूष नर्तक और संगीतकार नृत्‍य क्षेत्र में सबसे पहले प्रवेश करते हैं और वे अपनी पंक्ति को बनाए रखते हैं और समक्रमिक आकृतियां बनाते हैं। जब बाद में महिला नर्तकियां प्रवेश करती हैं तो पुरूष नर्तक महिला नर्तकियों, जो अपनी संरचनाओं तथा नृत्‍य क्रम को बनाए रखती हैं, के साथ मिलने के लिए अपनी पक्तियां भंग कर देते हैं। आमतौर पर नृत्‍य की विशेषता निश्‍चित मुद्राएं, लय में कूल्‍हें, बाजू, कलाईयों, घुटनों आदि का अंग-संचालन है लेकिन इसमें छलांगें नहीं हैं। बहुत मामूली लेकिन सूक्ष्‍म अंतर के साथ पुरूष और महिलाओं की नृत्‍य मुद्राएं एक समान हैं। यह नृत्‍य पारंपरिक बिहु संगीत के साथ पेश किया जाता है। सबसे महत्‍वपूर्ण संगीतकार ढोलकिये हैं, जो गर्दन से लटका ढोल एक लकडी तथा हथेली की सहायता से बजाते हैं। आमतौर पर एक से अधिक ढुलिया प्रदर्शन करते हैं और वे प्रदर्शन के अलग-अलग चरणों में अलग-अलग ताल बजाते हैं। ये तालबद्ध रचनाए, जिन्‍हें सिउ कहा जाता है, पारंपरिक रूप से कूटबद्ध हैं। नृत्‍य क्षेत्र में प्रवेश करने से  पहले, ढोलकिये एक छोटी तथा तेज गति वाली ताल बजाते हैं। सिउ में परिवर्तन होता है और आमतौर पर ढोलकिये पंक्ति बना कर नृत्‍य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। आमतौर पर शुरूआत में दर्दनाक मूल भाव देने के लिए एकल कलाकार द्वारा मोहोर जिंगोर पेपा बजाया जाता है तथा इससे नृत्‍य के लिए महौल तैयार होता है। इसके बाद पुरूष नर्तक एक संरचना बना कर नृत्‍य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तथा यन, जिसमें सभी भाग लेते हैं, के साथ प्रदर्शन करते हैं। इस नृत्‍य में प्रयुक्‍त होने वाले कुछ अन्‍य वाद्ययंत्र हैं ताला-  एक मंजीरा, गोगोना- एक प्रकार की बांसुरी और बांस का वाद्ययंत्र टोका- बांस का टुनटुना, तथा जुटूली-मिट्टी की सीटी। अक्‍सर बॉंस की बांसुरियों का प्रयोग भी किया जाता है। गीतों के विषय असमिया नव वर्ष के स्‍वागत से लेकर एक किसान के दैनिक जीवन के वर्णन, असम पर आक्रमण के ऐतिहासिक संदर्भ से ले कर व्‍यंग्‍यपूर्ण सामयिक सामाजिक राजनीतिक टिप्‍पणी तक विस्‍तृत हैं।  

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