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योगेश स्टेनो टायपिंग सेंटर छतरपुर (म.प्र.) 9993129162...
created Sep 24th 2020, 05:13 by Yogesh
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अध्यक्ष महोदय, यहां प्रतिदिन भाषण तैयार किए जाते हैं, वे यहां पर पेश होते हैं। उन पर धन्यवाद के प्रस्ताव पेश होते हैं और पास होते हैं। लेकिन देश की सेवा तब तक नहीं कर सकते जब तक कोई ठोस काम नहीं करते। जब तक हम अपने हालात के अनुसार काम शुरू नहीं करते तब तक हमारा किसी प्रकार से सुधार नहीं हो सकता। इन कामों के लिए सर्वेक्षण करना चाहिए लेकिन इसका लक्ष्य हमारे सामने नहीं। अगर हमें कोई लक्ष्य प्राप्त करना है जिसके लिए यहां पर बार-बार कह चुके हैं तो बहुत से ऐसे काम हैं जो हमारे प्रदेश ने अपनाये हैं। बहुत से काम ऐसे हैं जिन पर चल कर हम अपने को आगे ले जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर इस शिक्षा के बारे में कई बार सदन में कहा, कि शिक्षा की पद्धति जो हमारे मुल्क की है, यह हमें अंधेरे की ओर ले जा रही है वह शिक्षा जिसके द्वारा संसार ने हमें गुरू माना था, वह आध्यात्मिक शिक्षा जिसके द्वारा हमारा संसार लोहा मानता था, उसे हम त्याग रहे हैं। और हम दूसरी शिक्षा की तरफ जा रहे हैं। हमारे बच्चे अपने इतिहास को छोड़कर दूसरे मुल्कों के जापान, अमरिका आदि के इतिहास को पढ़ने में दिलचस्पी लेते हैं। हम अपनी चीजों को त्यागकर पश्चिम की नकल कर रहे हैं। मैं विश्वास नहीं कर सकता हूं कि जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं वह हमें कहां पर ले जाये वह शिक्षा जिसके द्वारा त्याग और तपस्या का उदाहरण पेश किया था, उसे छोड़कर अब हम अवनति की ओर बढ़ने जा रहे हैं। अगर हमें अपने जीवन को ऊंचा बनाना है तो हमें वे उपाय करने होंगे जो पहले हमारे देश में विद्यमान थे। लेकिन हम उन उपायों को भूलकर दूसरी ओर भाग रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले मैं दिल्ली गया था। मेरे दोस्त ने बहुत ही आश्चर्य में कहा था कि एक फ्रांस के विद्वान दिल्ली में आये थे। उन्होंने किसी जन-सभा में भाषण दिया और शुद्ध हिन्दी में भाषण दिया। मैंने बड़े गौरव के साथ जाकर उन्हें धन्यवाद किया। जब मैंने धन्यवाद अंग्रेजी में किया तो वह कहने लगेे कि क्या आपको हिन्दी नहीं आती है ?
आप हिन्दी में धन्यवाद क्यों नहीं करते ? मेरे मित्र शर्म के मारे मुँह उठा न सके। मैं अर्ज करना चाहता हूँ कि बाहर के विद्वान हिन्दी में यहाँ आकर भाषण देते हैं और यहाँ के लोग अभी भी अंग्रेजी में बोलने पर गौरव करते हैं।
आप हिन्दी में धन्यवाद क्यों नहीं करते ? मेरे मित्र शर्म के मारे मुँह उठा न सके। मैं अर्ज करना चाहता हूँ कि बाहर के विद्वान हिन्दी में यहाँ आकर भाषण देते हैं और यहाँ के लोग अभी भी अंग्रेजी में बोलने पर गौरव करते हैं।
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