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सांस्‍कुतिक राष्‍ट्रवाद का दम

created Aug 7th 2020, 10:06 by Soniya S


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अयोध्‍या में बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथो राम मंदिर का शिलान्‍यास सिर्फ मंदिर आंदोलन का उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचना भर नहीं है. इस आंदोलन का लक्ष्‍य भी मंदिर बनवाने तक सिमीत नहीं था. यह लक्ष्‍य था देश की सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद के विचार के इर्दगिर्द संचालित करने का। इस बड़े सपने के संदर्भ में देखें तो खुद को एक सांस्‍कृतिक संगठन के रूप में परिभाषित  करने वाले राष्ट्रिय स्‍वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई के तौर पर बीजेपी ने जो 3 बड़े लक्ष्‍य सामने रखे थे, अयोध्‍या में राम जन्‍मभूमि का निर्माण उनमें सिर्फ एक था। बाकी दो लक्ष्‍य थे सामान आचार संहिता और अनुच्‍छेद 370 का खात्‍म। यह भारत में सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद के राजनीतिक मुख्‍यधारा बन जाने का ही सबुत है कि एनडीए -2 के रूप में अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने के एक-सवा साल के अंदर ही बीजेपी इन तीनो लक्ष्‍यों को साध लेने का दावा करने की स्थिति में गई है। कोरोना के भीषण प्रकोप के बीच भी शिलान्‍यास का यह कार्यक्रम संपन्‍न होना बताता है कि सरकार  मंदिर निर्माण को अपने अंतिम बिंदु तक ले जाने में किसी भी तरह का विघ्‍न नहीं आने देगी। शिलान्‍यास के लिए 5 अगस्‍त की तारीख तय करने की भी वजहें हो सकती हैं, लेकिन एक वजह जगजाहिर है कि जम्‍मू-कश्‍मीर को अनुच्‍छेद 370 के तहत मिला विशेष दर्जा साल भर पहले इसी तारीख को समाप्‍त  किया गया था। एक बार में तीन तलाक कहने की कुप्रथा को दंडनीय अपराध घोषित करके सरकार समान आचार संहिता की तरफ एक ठोस कदम उठा चुकी है। कुला मिलाकर देखें तो सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद की मजबूत जमीन तैयार करके सत्‍ता हासिल करने और फिर उसके इर्द गिर्द एक बड़ा सामाजिक मतैक्‍य निर्मित करने में बीजेपी दुनिया की अन्‍य सामान्‍य धाराओं के मुकाबले कहीं ज्‍यादा सफल हुई है। इसकी शुरूवात 1979 में शिया बहुल ईरान में हुई इस्‍लामिक क्रांति से मानी जाती है जिसकी काट के रूप में साउदी अरब में बहावी उभार देखने को मिला। इसने दुनिया के बड़े हिस्‍से को अपनी जद में लिया और इसके अगले कदम के रूप में अलकायदा और आयसिस जैसे संगठन उभर आये जिन्‍होंने राष्‍ट्र का चक्‍कर ही पीछे छोड़ दिया।

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