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अभ्यास-34 (सौरभ कुमार इन्दुरख्या)
created Aug 3rd 2020, 05:11 by sourabh indurkhya
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आज हमारे देश का अर्थिक विकास कठिन दौर से गुजर रहा है । हम अपनी योग्यताओं में तभी सफल हो सकते है जब अर्थिक उन्नति के साथ-साथ सामाजिक प्रगति का ध्यान रखे क्योंकि राष्ट्र की चरित्रता का प्रभाव राष्ट्र के अन्य पहलुओं पर पड़े बिना नही रहता है । वर्तमान सामाजिक बुराइयों में भिक्षा-वृत्ति भी एक है ।
भिक्षा वृत्ति के प्रादुर्भाव की कहानी सदियों पुरानी है । पौराणिक कहानियों के अनुसार हमारे पूर्वज ब्राह्मणों और साधुओं को भिक्षा देते थे । समाज का एक विशेष वर्ग था जो केवल भिक्षा-वृत्ति पर आश्रित था । उस जमाने में समाज समृद्ध था । शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होता था जिसके पास खाने पीने के लिये पर्याप्त न हो । रोजगार सरलता से उपलब्ध था थोड़ा सा काम करके मनुष्य अपने खाने-पीने की व्यवस्था कर लेता था ।
समय की थपेडों से समाज की परिस्थितियाँ बदली और उसमें जिन बुराईयों का समावेश हुआ, उसमें भिक्षा-वृत्ति उल्लेखनीय है । साधुओं और ब्राह्मणों की देखा-देखी अन्य लोग भी भिखारी बन गये । जो भिक्षा के अधिकारी नहीं थे, वे भी भीख मांगने लगे और भिक्षा मिली जो प्रोत्साहन बढ़ा । आज हालत यह है कि भिक्षा-वृत्ति ने एक परम्परा का रूप धारण कर लिया है । ब्याह-शादी हो या फिर कोई और समारोह, छोटा-मोटा त्यौहार हो अथवा व्रत पूजा का आयोजन, जिन्हें दी जा रही है वे अधिकारी है भी या नहीं ? सच तो यह है कि असली और नकली भिखारी में आज पहचान कर पाना बहुत कठिन है । इसका फायदा उठाकर हट्टे-कट्टे उन लोगों ने भी, जो काम कर सकते हैं, भिक्षा-वृत्ति को व्यवसाय बना लिया । स्पष्ट है कि उन्होंने जनसाधारण की भावुकता और दया की भावना का अनुचित लाभ उठाया ।
भिक्षा वृत्ति के प्रादुर्भाव की कहानी सदियों पुरानी है । पौराणिक कहानियों के अनुसार हमारे पूर्वज ब्राह्मणों और साधुओं को भिक्षा देते थे । समाज का एक विशेष वर्ग था जो केवल भिक्षा-वृत्ति पर आश्रित था । उस जमाने में समाज समृद्ध था । शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होता था जिसके पास खाने पीने के लिये पर्याप्त न हो । रोजगार सरलता से उपलब्ध था थोड़ा सा काम करके मनुष्य अपने खाने-पीने की व्यवस्था कर लेता था ।
समय की थपेडों से समाज की परिस्थितियाँ बदली और उसमें जिन बुराईयों का समावेश हुआ, उसमें भिक्षा-वृत्ति उल्लेखनीय है । साधुओं और ब्राह्मणों की देखा-देखी अन्य लोग भी भिखारी बन गये । जो भिक्षा के अधिकारी नहीं थे, वे भी भीख मांगने लगे और भिक्षा मिली जो प्रोत्साहन बढ़ा । आज हालत यह है कि भिक्षा-वृत्ति ने एक परम्परा का रूप धारण कर लिया है । ब्याह-शादी हो या फिर कोई और समारोह, छोटा-मोटा त्यौहार हो अथवा व्रत पूजा का आयोजन, जिन्हें दी जा रही है वे अधिकारी है भी या नहीं ? सच तो यह है कि असली और नकली भिखारी में आज पहचान कर पाना बहुत कठिन है । इसका फायदा उठाकर हट्टे-कट्टे उन लोगों ने भी, जो काम कर सकते हैं, भिक्षा-वृत्ति को व्यवसाय बना लिया । स्पष्ट है कि उन्होंने जनसाधारण की भावुकता और दया की भावना का अनुचित लाभ उठाया ।
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